भविष्य पुराण की कथा के अनुसार चंद्र और सौर मासों के अंतर को अधिक मास का जाता है एक समय अधिक मास ने दुखी होकर भगवान विष्णु से कहा कि हे प्रभु क्षण, मुहूर्त, दिन, पक्ष, मास अपने-अपने स्वामी की आज्ञानुसार निर्भय होकर विचरण करते हैं। हे नाथ! मुझ अभागे का ना तो कोई स्थान है न स्वामी, शुभ कार्य मुझमें नहीं किए जाते। अधिक मास की पीड़ा को समझते हुए श्री भगवान विष्णु ने कहा कि मैं आपसे तुमको अपना नाम देता हूँ, तभी से इस अधिक मास को पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा।
हर तीसरे वर्ष अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास आता है इस मास में भगवान विष्णु का जप-तप-दान से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है, इस मास में कथा पढ़ने सुनने से बहुत लाभ प्राप्त होता है इस माह में व्रत यथाशक्ति करें एक समय भोजन करें या फलाहार करें।
कुछ नियम जो इस माह में पालन करें
1. सूर्य उदय से पहले उठें।
2. गीता जी का पन्द्रहवां अध्याय "पुरुषोत्तम योग" का प्रतिदिन पाठ करें।
3. श्रीमद्भागवत का पाठ करें।
4. रामचरितमानस का मास परायण करें।
5. प्रतिदिन मौनपूर्वक रुचि एवं विश्वासपूर्वक मौन रहकर भजन करें।
6. माता पिता गुरुजनों को प्रणाम करें।
7. जानबूझकर असत्य न बोले और निंदा चुगली से बचें
8. पुरुषोत्तम मास में दान देने का बड़ा महत्व है यथाशक्ति, यथाश्रद्धा दान करें किंतु पात्र को करें।
9. व्रत करें साथ ही बुरी आदतों को छोड़ने का व्रत लें।
10. यदि हो सके तो श्री धाम वृन्दावन की परिक्रमा करें, यदि व्यक्ति श्री धाम वृन्दावन में या उसके आसपास रहता हो तो प्रतिदिन परिक्रमा दे, यदि सामर्थ्य हो तो डण्डोति परिक्रमा दे। श्री धाम वृन्दावन की महिमा का वर्णन कोई भी नहीं कर सकता है।
ब्रज के संत तो यहाँ तक कहते है
रे मन वृंदा विपिन निहार,
यद्यपि मिलें कोट चिंतामणि तदपि न हाथ पसार।
विपिन राज सीमा से बहार विनहु कू न निहार
रे मन वृंदा विपिन निहार,
विपिन राज का मतलब यहाँ भगवान् श्री कृष्णा जी से है।
नोट : कोई भी मांगलिक कार्य स्मार्ट में नहीं किए जाते
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