Thursday 26 April 2018

सात ठाकुर जो श्री वृंदावन में प्रकट हुए हैं उनके नाम और स्थान

1. श्री राधा गोविंददेव जी, जयपुर, कहाँ से मिली : वृंदावन के गौमा टीला से, यहाँ है स्थापित : जयपुर के राजकीय महल में। 
श्रील रूप गोस्वामी पाद श्री चैतन्यमहाप्रभु की आज्ञा से श्रीवृन्दावन आए, यहाँ रहकर भजन, ग्रन्थ प्रणयन, लुप्त तीर्थ उद्धार कार्य में रत रहते, एक बार आधी रात ठाकुरजी का स्वप्नादेश हुआ की, "मैं गोमा टीला में दबा हूँ, मुझे बाहर निकालो", श्रील रूप गोस्वामी पाद ने ब्रजवासियों को एकत्रित कर टीले की खुदवाई की, दस हाथ नीचे विश्व विमोहन श्री गोविन्द देवजी प्रकट हुए।

माघ शुक्ल पंचमी सं 1594 को छोटेसे मन्दिर में शास्त्रोक्त विधि से श्री कृष्ण प्रपौत्र श्री वज्रनाभ द्वारा प्रतीष्ठित उस प्राचीन श्री गोविन्द देव जी विग्रह की पुनः प्रतिष्ठा हुई।

पूर्व काल में वृन्दवन से उड़ीसा ले जाई गई श्री राधा जी के विग्रह को पुनः उनके ही स्वप्नादेश से श्री वृन्दावन लाकर  श्री गोविन्द देव के साथ स्थापित किया गया।

आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंददेव जी का भव्य मंदिर बनवाया था। इस मंदिर मे गोविंददेव जी 80 साल विराजे।

औरंगजेब के शासन काल मे बृज पर हुए हमले के समय श्री राधा गोविंद जी को उनके भक्त जयपुर ले गए,  तबसे श्री राधा गोविंदजी जयपुर के राजकीय महल मंदिर मे विराजमान हैं। 

2. श्री मदन मोहन जी, करौली, कहाँ से मिली : वृंदावन के कालीदह के पास  द्वादशादित्य टीले से यहाँ है स्थापित : करौली  (राजस्थान ) में। 
यह मूर्ति अद्वैत प्रभु को वृंदावन के द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी। यवन आतंक से बचाने ठाकुरजी के स्वयं के आदेश से उन्होंने इस विग्रह को सेवा पूजा के लिए मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को सौंप दी, कालांतर में पुनः ठाकुरजी के आदेश से चतुर्वेदी परिवार से मांग कर सनातन गोस्वामी पाद इन्हें श्री वृन्दवन ले आए, वि.सं 1590 (सन् 1533) में फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित किया।

बाद मे क्रमश: मुलतान के नामी व्यापारी रामदास कपूर और उड़ीसा के राजा ने यहां मदन मोहन जी का विशाल मंदिर बनवाया।

मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हे जयपुर ले गए पर कालांतर में करौली के राजा गोपाल सिंह ने अपने राजमहल के पास बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहन जी की मूर्ति को स्थापित किया, तबसे मदनमोहन जी करौली में दर्शन दे रहे हैं। 

3. श्री गोपीनाथ जी, जयपुर, कहाँ से मिली : यमुना किनारे वंशीवट से, यहाँ  है स्थापित : पुरानी बस्ती जयपुर। 
श्री गोपीनाथ जी राधारानी के साथ श्री वंशीवट में संत परमानंद भट्ट को प्राप्त हुए, उन्होंने निधिवन के पास स्थापित कर मधु गोस्वामी को इनकी सेवा पूजा सौंपी, मधु गोस्वामी पाद ने लगभग 40 वर्ष अपनी कुटिया में सेवा की।

बाद मे रायसल राजपूतो ने यहा मंदिर बनवाया पर औरंगजेब के आक्रमण के दौरान इस प्रतिमा को भी जयपुर ले जाया गया, तबसे गोपीनाथ जी वहाँ पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ मंदिर में विराजमान हैं।

वृन्दावन में खण्डित मन्दिर में श्री चैतन्यदेव विराजे रहे, बादमें इसके पास श्री नंदकुमार वसु ने नया मन्दिर बनवाया और प्रतिभू विग्रह स्थापित किया, जिनके दर्शन श्री वृन्दावन में होते हैं।

4. श्री जुगलकिशोर जी, पन्ना  (म.प्र), कहा से मिली : वृंदावन के किशोरवन से, यहाँ  है स्थापित : पुराना जुगलकिशोर मंदिर  पन्ना  (म .प्र) ।
भगवान जुगलकिशोर की यह मुर्ति हरिराम व्यास को वि. सं 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली, व्यास जी ने उस प्रतिमा को वही प्रतिष्ठित किया, बाद में ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया, यहा भगवान जुगलकिशोर अनेक वर्षों तक विराजे पर मुगलिया हमले के समय उनके भक्त उन्हे ओरछा के पास पन्ना ले गए, ठाकुर आज भी पन्ना के पुराने जुगलकिशोर मंदिर मे दर्शन दे रहे हैं। 

5. श्री राधारमण जी, वृंदावन, कहाँ  से मिली : वृन्दावन, यहाँ है स्थापित : वृंदावन। 
गोपाल भट्ट गोस्वामी श्री गौरांग महाप्रभु के अत्यंत कृपा पात्र थे, श्री गौर ने अन्य गोस्वामियों को विग्रहः सेवा प्रदान की थी और गोपाल भट्ट जी को आदेश किया था नेपाल गण्डकी नदी से उन्हें शालिग्राम जी प्राप्त होंगे, जिनकी पूजा वो करें। 

गोपाल भट्ट जी अत्यन्त प्रेमपूर्वक उन की पूजा करते, परंतु मन में इच्छा होती की काश विग्रहः स्वरूप होते तो मैं भी वस्त्र आभूषण से सेवा करता, एक दिन किसी वणिक ने बहुत सुंदर वस्त्र आभूषण भेंट कर दिए तो गोपाल भट्ट जी के मन की पीड़ा और बढ़ गई, उन्होंने ठाकुरजी से प्रार्थना की कि आप प्रह्लाद जी के लिए प्रकट हो सकते हैं तो मेरे लिए भी हो जाइये, दुखी मनसे वे सो गए। 

सुबह होते ही उन्होंने देखा शालिग्रामजी त्रिभंग ललित द्वादश अंगुष्ठ प्रमाण दिव्य प्रतिमा में बदल गए थे, श्याम शरीर अपूर्व सौंदर्य छिटक रहा था, इस प्रतिमा में उन्हें श्री गोविन्द देवजी, श्री मदन मोहन जी एवं श्री गोपीनाथ जी के दर्शन हुए, ये ही श्री राधा रमन जी का भुवन मोहन विग्रह था, इस विग्रह में दामोदर शिला(शालिग्राम जी) के सभी चिन्ह थे, ये चिन्ह श्री राधा रमन जी की पीठ की ओर देखे जा सकते हैं।

यह दिन वि. सं 1599 (सन् 1542)कि वैशाख पूर्णिमा का था, वर्तमान मंदिर मे इनकी प्रतिष्ठापना सन् 1884 में  की गयी थी। 

उल्लेखनीय है कि  मुगलिया हमले के बावजूद यही एक मात्र ऐसी प्रतिमा है जो वृंदावन से कहीं बाहर नही गई, इन्हें भक्तो ने वृंदावन  में  ही छुपाकर रखा।

इसकी सबसे विषेश बात यह है कि जन्माष्टमी जहाँ दुनिया के सभी कृष्ण मंदिरों में रात्रि बारह बजे उत्सव होता है, वही राधारमण जी का जन्म अभिषेक दोपहर बारह बजे होता है, मान्यता है ठाकुर जी सुकोमल होते है उन्हें रात्रि में जागना ठीक नहीं।

6. श्री राधावल्लभ जी, वृंदावन, कहाँ से मिली : यह प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज में मिली थी, यहाँ है स्थापित : वृंदावन। 
भगवान श्रीकृष्ण की यह सुन्दर प्रतिमा हित हरिवंश जी को दहेज में मिली थी, उनका विवाह देवबंद से वृंदावन आते समय चटथावल गांव में आत्मदेव ब्राह्मण की बेटी से हुआ था, पहले वृंदावन के सेवाकुंज में (वि. सं 1591) और बाद मे सुंदरलाल भटनागर द्वारा बनवाया गया (कुछ लोग इसका श्रेय रहीम को देते हैं ) लाल पत्थर वाले पुराने मंदिर में प्रतिष्ठित हुए।

मुगलिया हमले के समय भक्त इन्हे कामा ( राजस्थान ) ले गए थे, वि. सं 1842 में एक बार फिर भक्त इस प्रतिमा को वृंदावन ले आये और यहाँ नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित किया, तबसे राधावल्लभ जी की प्रतिमा यहीं विराजमान है।

7. श्री बाँके बिहारी जी, वृंदावन, कहाँ से मिली : वृंदावन के निधिवन से, यहाँ  है स्थापित : वृंदावन। 
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को स्वामी हरिदासजी की आराधना को साकार रूप देने के लिए बाकेबिहारी जी की प्रतिमा निधिवन में प्रकट हुई, स्वामी जी ने उस प्रतिमा को वही प्रतिष्ठित कर दिया, मुगलिया आक्रमण के समय भक्त इन्हे भरतपुर (राजस्थान ) ले गए, वृंदावन में भरतपुर वाला बगीचा नाम के स्थान पर वि. सं 1921 में मंदिर निर्माण होने पर बाँकेबिहारी जी एक बार फिर वृंदावन में प्रतिष्ठित हुए, तब से बिहारीजी यहीं दर्शन दे रहे हैं।

बिहारी जी की प्रमुख विषेश बात यह है कि यह साल में केवल एक दिन  (जन्माष्टमी के बाद भोर में) मंगला आरती होती है, जबकि अन्य वैष्णव मंदिरों में नित्य सुबह मंगला आरती होने की परंपरा है।

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