Sunday 3 June 2018

गृहस्थ जीवन में सुखी रहने के 10 अति उत्तम उपाय जिनको अवश्य करना चाहिए

1.सप्ताह में एक बार घर में नमक मिले पानी से ही पोंछा लगाएं। 

2. शनिवार, मंगलवार व गुरुवार को कभी भी नाखून न काटें और न ही बाल अथवा शेव बनायें। 

3. सोते समय किसी सफेद कागज में थोड़ा सा कपूर रखें और प्रात उसे घर से बाहर जला दें, इससे भी घर शांति के साथ आर्थिक संपन्नता आती है। 

4. यदि पति-पत्नी में आपसी मतभेद हों तो तीन टिकिया कपूर व थोड़ा सा सिंदूर चढ़ाने रखें प्रातः स्नान के बाद कपूर को घर की देहरी पर जला दें और सिंदूर को किसी तांबे के पात्र में गुड मिश्रित जल में मिलाकर सूर्य देव को अर्पित करें आप इस उपाय को शुक्ल पक्ष में ही करें और लगातार एक सप्ताह तक करें आप स्वयं परिवर्तन महसूस करेंगे, परंतु इस पूरे सप्ताह आप आपस में संबंध न बनाएं। 

5. यदि किसी संतान की पत्रिका में अल्प आयु योग है तो पिता को देवगुरु गुरु की सेवा करना तथा गुरुवार का व्रत भी रखना चाहिए यह व्रत आप अपनी संतान की रक्षा के लिए भी रख सकते हैं। 

6. आप घर में संक्रांति (जब सूर्य अगली राशि में प्रवेश करते हैं) के समय रविवार को छोड़कर गोमूत्र का छिड़काव अवश्य करें इस उपाय से घर हर प्रकार से सुरक्षित रहता है, सभी में प्रेम बना रहता है।  

7. नियमित रूप से उठते ही घर के मुख्य द्वार पर एक लोटा जल डालें स्नान के बाद पाठ करें तथा द्वार पर हल्दी से स्वस्तिक व ॐ बनाएं, इस उपाय से घर में सुख शांति रहती है, गृह स्वामी की उन्नति में कोई बाधा नहीं आती है। 

8. घर में यदि पति पत्नी में मतभेद हो प्रेम की कमी हो अथवा आप घर में और अधिक प्रेम चाहते हैं तो आप यह उपाय प्रथम मंगलवार से आरंभ करें इस उपाय से घर तो सुरक्षित रहता ही है साथ ही प्यार भी बढ़ता है यदि कोई मतभेद हो तो वह भी समाप्त हो जाता है। 

9. घर में बनने वाली पहली रोटी गाय को अवश्य दें, पहली  थाली प्रभु को दूसरी थाली पितरों को अर्पित कर गाय को खिलानी चाहिए, इससे प्रभु कृपा के साथ हम पर पितरों की कृपा बनी रहती है।  

10. कुछ देवता दर्शन प्रधान व कुछ देवता प्रदक्षिणा प्रधान होते हैं, शरीर द्वारा परिश्रम करके प्रदक्षिणा करने पर शरीर इंद्रिय और मन के देवता के सूक्ष्म परिणाम होते हैं बुद्धि एवं चित्त के विकार को दूर करने के लिए नक्शा अप्रतिम साधन है प्रदक्षिणा से जो परिक्षण होता है इससे शरीर शुद्धि, वाणी द्वारा जप करने से वाचा शुद्धि एवं प्रदक्षिणा करते समय विचारों का प्रभाव कम रहने से चित्त शुद्धि हो जाती है। दायां अंग देवता की ओर रखकर मंद गति से प्रदक्षिणा करें। 

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