श्री राधावल्लभ मंदिर के एक बहुत अच्छे संत के जीवन का प्रसंग है जिनका नाम श्री राधावल्लभ चरण दास था। राजस्थान के एक राजपूत क्षत्रिय व्यक्ति एक बार वृन्दावन आये और श्री राधावल्लभ के रूप में आसक्त हो गए और श्री वृन्दावन में ही निवास करने लगे। ये बहुत बलवान थे और राधावल्लभ मंदिर का जो बड़ा घंटा है उसको अपने हाथ में लेकर आरती के समय बजाते।
एक समय महात्मा जी सेवा के लिए पुष्प लाने यमुना जी के समीप गए थे तब एक मगर ने उनका पैर पकड़ लिया। मगर का बल जल में बहुत अधिक होता है परंतु महात्मा प्रचंड बलवान थे। महात्मा ने कहा – हे प्रभु ! ये मगर हमको आपकी सेवा करने से रोक रहा है। महात्मा जी बहुत बलवान थे, उन्होंने उस मगर को उठाया और कंधे पर रखकर वृन्दावन के गलियों, कुंजो से घुमाकर लाये और श्री राधावल्लभ जी के मंदिर में ले आये। साधू संतो ने कहा – बाबा ये आफत कहां से लेके आ गए।
महात्मा जी ने स्नान किया, प्रसाद उस मगर के मुख में डाला, प्रभु का चरणामृत मुख में डाला और भगवान् के दर्शन कराये। इसके बाद महात्मा जी उस मगर को ले जाकर पुनः यमुना जी के किनारे छोड़ आये। लौटने पर संतो ने पूछा – महाराज जी ! आपने उस मगरमछ को मंदिर में लाकर चरणामृत और प्रसाद पवाया, दर्शन कराया, इसका कारण क्या है ? उस क्रूर पशु को आप यहाँ उठा कर किस कारण से लाये ?
महात्मा जी बोले – कुछ भी हो परंतु उस मगर ने संत के चरण पकड़े थे। भाव से न सही परंतु संत चरणों को पकड़ने वाले पर कृपा कैसे न होती ? यदि हम उस मगर को मंदिर न लाते तो प्रभु कहते कि मगर ने संत के चरण पकड़े परंतु उसको क्या मिला ? मेरे राधावल्लभ जी की बदनामी होती कि राधावल्लभ जी के एक दास के चरण मगर ने पकड़े और उसे कुछ न मिला। प्रभु को लज्जा लगती अतः हमने उस मगर पर कृपा की।
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ReplyDeleteOdia Literature Book Prakutira Anupama Abadana Tulasi
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