Monday 23 July 2018

राम लक्ष्मण जानकी जय बोलो हनुमान की रामायण का एक सुन्दर प्रसंग

महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण में भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम बताया गया है, श्रीराम भगवान विष्णु के रूप थे, स्वाभाविक है कि श्रीराम का चरित्र भी भगवान के समान सौम्य होगा, लेकिन श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण जोकि शेषनाग के अवतार थे, के चरित्र के बारे में कम ही लोग जानते होंगे, लक्ष्मणजी के चरित्र के बारे में रामायण में कई जगह उल्लेख मिलता है।  

एक बार महर्षि अगस्त्य श्रीराम की सभा में आए, राम ने लंका के युद्ध की चर्चा करते हुए उनसे कहा, मैंने रावण कुंभकर्ण को रणभूमि में मार गिराया था तथा लक्ष्मण ने इंद्रजीत और अतिकाय का वध किया था। तब महर्षि बोले, हे राम! इंद्रजीत लंका का सबसे बड़ा वीर था, वह इंद्र को बांध कर लंका ले आया था, ब्रह्माजी आकर इंद्र को मांग ले गए, इंद्रजीत बादलों की ओट में रहकर युद्ध करता था, लक्ष्मण ने उसका वध किया तो लक्ष्मणजी के समान त्रिभुवन में कोई वीर नहीं है।

यह सुनकर श्रीराम बोले, मुनिवर यह आप क्या कह रहे हैं? महावीर कुंभकर्ण और रावण को पराजित करना मुश्किल काम था, तब आप इंद्रजीत पर इतने मेहरबान क्यों हैं? तब महर्षि अगस्त्य बोले, इंद्रजीत को वरदान था कि जो व्यक्ति चौदह वर्ष तक नहीं सोया हो, न ही इन वर्षों में किसी स्त्री का मुख देखा हो, इन वर्षों में भोजन नहीं किया हो ऐसा व्यक्ति ही इंद्रजीत को मार सकता था। 

तब श्रीराम बोले, मुनिवर आपका कहना ठीक है, लेकिन हम चौदह वर्ष तक साथ रहे, पर लक्ष्मण सोए नहीं ? इस बात पर कैसे विश्वास किया जाए? तब श्रीराम ने सभा बुलाई जिसमें लक्ष्मणजी भी आमंत्रित थे, लक्ष्मण जी से जब यह बात पूछी गई कि आप चौदह वर्ष तक सोए नहीं, क्या तुमने अन्न नहीं खाया ? लक्ष्मणजी ने कहा कि, जब रावण माता सीता जी का हरण करके ले गया तब हम माता सीता जी को खोजते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे। वहां सुग्रीव ने माता सीता के आभूषण दिखाए लेकिन में उनके नुपूर (पैरों की बिछिया) ही पहचान पाया क्योंकि मैंने उन्हें चौदह वर्षों तक देखा ही नहीं था उनसे बात करते समय मेरी निगाह सिर्फ माता के चरणों पर रहती थी।

जब आप और माता सीता कुटिया में रहते थे तो मैं बाहर पहरा देता था, जब मुझे नींद आती तो मैं अपने बाणों से आंखों को कष्ट पहुंचाता ताकि नींद न आए, इस तरह में चौदह वर्ष तक जागता रहा, मैं अन्न इसलिए नहीं खाता था, क्योंकि मैं जंगल में जाकर फल लाता था, और आप उनके तीन भाग करते थे, आपने कभी मुझसे उन्हें खाने के लिए नहीं कहा, आपकी आज्ञा के बिना मैं अन्न कैसे खा सकता था, अतः चौदह वर्ष से सभी फल मेरे पास सुरक्षित रखे हुए हैं। 

तब उन्होंने फल लाने का आदेश हनुमान जी को दिया, फलों के बारे में सुनकर हनुमानजी को अहंकार आ गया कि इन फलों को मैं आसानी से ला सकता हूं, जब वह फल लेने गए तो उसकी टोकरी को हिला भी नहीं पाए। उन्होंने सभा में आकर श्रीराम जी से कहा कि प्रभु में उन फलों की टोकरी को हिला भी नहीं पा रहा हूं। तब श्रीराम ने लक्ष्मण जी को फल लाने का आदेश दिया और उनसे पूरे फल गिनकर लाने को कहा। फलों की गिनती में सात दिनों के फल कम निकले। 

श्रीराम बोले कि, तो सात दिनों के फल तुमने खा लिए थे, लक्ष्मण जी बोले, नहीं प्रभु, दरअसल जिस दिन पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर हम वियोग में रहे उन सात दिनों में हम विश्वामित्र आश्रम में निराहार रहे, जिस दिन में इंद्रजीत के नागपाश में बंधा था, उस दिन फल नहीं लाया था, जिस दिन रावण ने मुझे शक्ति मारी थी, उस दिन भी मैं फल नहीं ला सका, जिस दिन रावण की मृत्यु का अपार हर्ष था उस दिन भी मैं फल नहीं लाया था।

आपके मन में यही शंका है कि मैं फल खाता था या नहीं दरअसल आप भूल गए हैं कि ऋर्षि विश्वामित्र से हमें ऐसा मंत्र मिला था, जो मुझे याद है उसी के चलते में बिना अन्न-जल के चौदह वर्ष उपवासी रहा, इन सभी कारणों से इंद्रजीत मेरे हाथ से मारा गया यह सब कुछ सुनकर भगवान श्रीराम ने अपने आज्ञाकारी और अतुल्य अनुज को गले लगा लिया।

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