Saturday 28 July 2018

गुरु ही ब्रम्हा गुरु ही विष्णु गुरु देवो महेश्वरः गुरु ही साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः

गुरु, ईश्वर के सगुण रूप होते हैं! ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का सुनहरा अवसर है, गुरुपूर्णिमा, क्योंकि, इस दिन गुरुतत्त्व नित्य की तुलना में सहस्र गुना सक्रिय रहता है, इसलिए इस दिन की हुई सेवा और त्याग का फल सहस्र गुना मिलता है।

गुरुपूर्णिमा गुरु का महत्व 
मैने एक आदमी से पूछा कि गुरू कौन है, वो सेब खा रहा था, उसने एक सेब मेरे हाथ मैं देकर मुझसे पूछा इसमें कितने बीज हैं बता सकते हो ? सेब काटकर मैंने गिनकर कहा तीन बीज हैं, उसने एक बीज अपने हाथ में लिया और फिर पूछा इस बीज में कितने सेब हैं यह भी सोचकर बताओ? मैं सोचने लगा एक बीज से एक पेड़, एक पेड़ से अनेक सेब अनेक सेबो में फिर तीन तीन बीज हर बीज से फिर एक एक पेड़ और यह अनवरत क्रम। 

वो मुस्कुराते हुए बोले, बस इसी तरह गुरु की कृपा हमें प्राप्त होती रहती है! बस हमें उसकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की ज़रूरत है। 

1. गुरू एक तेज हे जिनके आते ही, सारे सन्शय के अंधकार खतम हो जाते हैं। 
2. गुरू वो मृदंग है जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनने शुरू हो जाते है। 
3. गुरू वो ज्ञान हैं जिसके मिलते ही भय समाप्त हो जाता है।
4. गुरू वो दीक्षा है जो सही मायने में मिलती है तो भवसागर पार हो जाते है। 
5. गुरू वो नदी है जो निरंतर हमारे प्राण से बहती हैं। 
6. गुरू वो सत चित आनंद है जो हमें हमारी पहचान देता है। 
7. गुरू वो बांसुरी है जिसके बजते ही मन और शरीर आनंद अनुभव करता है!
8. गुरू वो अमृत है जिसे पीकर कोई कभी प्यासा नही रहता है!
9. गुरू वो कृपा ही है जो सिर्फ कुछ सद शिष्यों को विशेष रूप मे मिलती है और कुछ पाकर भी समझ नही पाते हैं। 
10. गुरू वो खजाना है जो अनमोल है। 
11. गुरू वो प्रसाद है जिसके भाग्य मे हो उसे कभी कुछ भी मांगने की ज़रूरत नही पड़ती है।

गुरु क्या है ?
गुरु हर सवाल का जवाब है, गुरु हर मुश्किल की युक्ति है, गुरु ज्ञान का भंडार है, गुरु मार्गदर्शक है, गुरु एक अहसास है, गुर प्यार है, गुरु ज्ञान की वाणी है, गुरु हमारे जीवन का चमत्कार है, गुरु मित्र है, गुरु भगवान् रूप है, गुरु अध्यात्म की परिभाषा है, धन्य हैं वो लोग जो गुरु के संपर्क में  हैं, तथा उनके सानिध्य में जीवन के कुछ ज्ञान और शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मिला।

गुरु शब्द और गुरु का जीवन समुंदर की गहराई है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता है।
सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब वनराय, सात सुमुंदर को मसि करूँ,
गुरु गुण लिखा ना जाये, गुरु की महत्त, करता  करे ना कर सके, गुरु करे सब होय। 

सात द्वीप नौ खंड में गुरु से बड़ा ना कोय, मैं तो सात संमुद्र की मसीह करु, 
लेखनी सब बदराय, सब धरती कागज करु पर, गुरु गुण लिखा ना जाय। 

गुरु का हाथ पकड़ने की बजाय अपना हाथ गुरु को पकड़ा दो, क्योंकि हम गुरु का हाथ गलती से छोड़ सकते हैं,  किन्तु, गुरु हाथ पकड़ेंगे तो कभी नहीं छोड़ेंगे, 

गुरु ही ब्रम्हा  गुरु ही विष्णु  गुरु देवो महेश्वरः गुरु ही साक्षात परब्रह्म  तस्मै श्री गुरुवै नमः
गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है, गुरु ही हमें सही राह दिखाते है, इसलिए हमें गुरु की हर आज्ञा का पालन करना चाहिए। 

प्रभु श्रीराम एवं श्री कृष्ण को भी गुरु के पास शिक्षा प्राप्त करना पड़ा था, गुरु भक्ति के कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में हैं, गुरु केवल मार्गदर्शक है, आत्मा के लिये तो आपको ही पुरुषार्थ करना है।

गुरु ने रास्ता दिखाया है, चलना आपको है, गुरु ने उपदेश दिया है, पालन आपको करना है, गुरु की वाह वाह से मोक्ष नहीं मिलता है, गुरुवचन के अनुसार चलने से मोक्ष मिलता है, जब गुरु के दर जाना हो, तो दिमाग बंद कर लेना। 

जब गुरु के शब्द सुनने हों, तो कान खोल लेना, जब गुरु पे विश्वास करना हो, तो आँखें बंद कर लेना, जब गुरु को अर्पण करना हो, तो दिल खोल लेना, जब गुरु का प्रवचन सुनना हो, तो मुख बंद कर लेना, जब गुरु की सेवा करनी हो, तो घड़ी बंद कर लेना, जब गुरु से विनती करनी हो, तो झोली खोल लेना, यह गुरु का दर है, यहाँ मनमानी नही होती, यह बात भी पक्की है, कि कोई परेशानी नही होती।

संत कबीर जी ने भी अपने अंदाज में  कहा है कई
गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागों पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय।
अर्थ ये है कि गुरु और भगवान् दोनों आपके सामने खड़े हैं तो किसके चरण पहले छुओ तो कबीर दास जी ने साफ़ कहा है कि भगवान् से पहले गुरु के पैर पहले छुओ क्यों कि भगवान् तो तब मिलने जब गुरु सही राह दिखाए।

पांच साल का ध्रुव निकल पड़ा था परमपिता की खोज में तो उनको सही राह दिखाई देवर्षि नारद जी ने, ध्रुव के गुरु थे देवर्षि नारद जी, तथा भक्त प्रह्लाद के गुरु भी देवर्षि नारद ही थे, माता पार्वती जी के गुरु जी भी नारद जी थे उन्ही की कृपा से माता पार्वती जी ने भगवान् शंकर जी को अपने पति के रूप में पाया। जिस जिस व्यक्ति को नारद जी गुरु के रूप में मिले उनको भगवान् के दर्शन अवश्य हुए, और हां एक बात और भगवान् की भी हिम्मत नहीं कि नारद मुनि के शिष्य को दर्शन न दें या उनका कल्याण न करें भगवान् से कहते है कि मेरा शिष्य है गड़बड़ न हो जाये, और यदि तनिक भी चूक भगवान् से हो जाय तो भगवान् तक को शाप दे डालते हैं, और भगवान् को उस शाप को स्वीकारना पड़ता है ये है गुरु की महिमा।

भगवान् स्वयं कहते हैं कि मेरा अपराध करने वाले भी उद्धार हो सकता है परन्तु गुरुद्रोही को में कभी माफ़ नहीं कर सकता हूँ।

गुरु परशुराम जी के बारे में तो सुना ही होगा, महात्मा भीष्म जिनको परशुराम जी भी परास्त नहीं कर सके, उन भीष्म के गुरु परशुराम ही थे द्रोणाचार्य के गुरु भी परशुराम जी ही थे, द्वापर काल में कोई भी खत्रिय या ब्राम्हण  ऐसा नहीं  था जिनके गुरु परशुराम जी न हों कर्ण भी परशुराम जी का ही शिष्य था।

अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य थे, खुद द्रोणाचार्य भी अर्जुन को कभी परास्त नहीं कर सके ये है गुरु की महिमा, न जाने कितने गुरु हुए भारतवर्ष में जो अति दिव्य शक्ति से संम्पन्न थे।

परन्तु आज कल कलियुग का राज चल रहा है, और इतना पाखंड फैला है संसार में कि कैसे पहिचान करें कि कौन सही में गुरु बनाने लायक है। तो मेरी राय तो यहाँ यह कहती है कि भगवान् श्री कृष्ण को ही अपना गुरु बनाया जाये, और भगवान् श्री कृष्ण का मन में ध्यान करते हुए जो भी मंत्र आपके ध्यान में आये उसे ही  गुरुमंत्र मानते हुए उसका नित्य मन में उसका जाप करना चाहिए।

भगवान् श्री कृष्ण जी को गुरु के रूप में मानते हुए इस मंत्र को भगवान् श्री कृष्ण के समक्ष ये मंत्र  बोलना चाहिए।

वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूरमर्दनं।  देवकी परमानंदं कृष्णं वंदे जगद्गुरुं।।

और उनको पत्र पुष्प अर्पण करना चाहिए और भोग लगाना चाहिए, इससे दो फायदे होते हैं कि भगवान् और गुरु दोनों की सेवा एक साथ हो जाती है। और जिसका गुरु स्वयं भगवान् हो उसका कल्याण तो तय है। क्यों कि हो सकता कि भगवान् जीव को भूल जाय वैसे तो ये होता नहीं है कि भगवान् हमको भूल जाएँ क्योंकि परन्तु गुरु के रूप में भगवान् सदैव हमारा ध्यान रखेंगे कि मेरे शिष्य का पतन न हो जाये।  

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