Wednesday 11 July 2018

श्री कृष्ण जी की माखन चोरी लीला का एक सुन्दर प्रसंग

माखन चोर नटखट श्री कृष्ण को रंगे हाथों पकड़ने के लिये एक ग्वालिन ने एक अनोखी जुगत भिड़ाई।उसने माखन की मटकी के साथ एक घंटी बाँध दी, कि जैसे ही बाल कृष्ण माखन-मटकी को हाथ लगाएंगे, घंटी बज उठेगी और मैं उसे रंगे हाथों पकड़ लूँगी। वास्तव में मन में उसका यह भाव था कि यदि में सो गयी गई और बालकृष्ण मक्खन चुराने आएंगे तो में सोते हुए उनके दर्शन कैसे करुँगी घंटी बजेगी तो में जग जाऊंगी और उनको निहारूंगी, जब माखन चुराकर जायेंगे तो उनको पकड़ लूंगी और उनसे झूट मूट की डांट डपट करुँगी, और वो डांट डपट से बचने के लिए जो बहाने बनाएंगे तो उनका मुखारविंद  लगेगा इस आनंद के साथ उसने मन में ये बात ठानी और मटकी पर घंटी लटका दी। 

बाल कृष्ण जी ने ग्वालिन की मनोदशा को जानते हुए उसी के घर में चोरी करने का निश्चय किया और अपने सखाओं के साथ दबे पाँव घर में घुसे। श्री दामा की दृष्टि तुरन्त घंटी पर पड़ गई और उन्होंने बाल कृष्ण को संकेत किया। बाल कृष्ण ने सभी को निश्चिंत रहने का संकेत करते हुये, घंटी से फुसफसाते हुये कहा:- "देखो घंटी, हम माखन चुरायेंगे, तुम बिल्कुल मत बजना" घंटी बोली "जैसी आज्ञा प्रभु, नहीं बजूँगी"

बाल कृष्ण ने ख़ूब माखन चुराया अपने सखाओं को खिलाया - घंटी नहीं बजी। ख़ूब बंदरों को खिलाया घंटी नहीं बजी। अंत में ज्यों हीं बाल कृष्ण ने माखन से भरा हाथ अपने मुँह से लगाया, त्यों ही घंटी बज उठी। घंटी की आवाज़ सुन कर ग्वालिन दौड़ी आई। ग्वाल बालों में भगदड़ मच गई। सारे भाग गये बस श्री कृष्ण पकड़ में आ गये। और आते क्यों नहीं उन्हें उस गोपी के मनोरथ को पूरा जो करना था। 

पकडे जाने के बाद बाल कृष्ण बोले - "तनिक ठहर गोपी, तुझे जो सज़ा देनी है वो दे दीजो, पर उससे पहले मैं ज़रा इस घंटी से निबट लूँ, क्यों री घंटी, तू बजी क्यो, मैंने मना किया था न ?"

घंटी क्षमा माँगती हुई बोली - "प्रभु आपके सखाओं ने माखन खाया, मैं नहीं बजी, आपने बंदरों को ख़ूब माखन खिलाया, मैं नहीं बजी, किन्तु जैसे ही आपने माखन खाया तब तो मुझे बजना ही था, मुझे आदत पड़ी हुई है प्रभु, मंदिर में जब पुजारी  भगवान को भोग लगाते हैं तब घंटियाँ बजाते हैं, इसलिये प्रभु मैं आदतन बज उठी और बजी ? ये सिद्ध करती है प्रभु की लीला में जो भी सहायक होता है वह चेतन ही होता है, ये सभी भगवान् कृष्णा के पार्षद ही हैं जो ब्रजमंडल में किसी ना किसी रूप में विराजमान हैं। चाहे वह पेड़ हों, या फिर जड़ हों, यमुना नदी, गोवर्धन पर्वत यानि कि पूरा का पूरा ब्रजमंडल चेतन है। 

परन्तु गोपी उस घंटी की बात को सुन ना सकी तो मन में यह सोच कर आनंदित हो रही है की देखो बालकृष्ण अपने को बचने के लिए एक नया बहाना ढूंड रहे हैं। तो इस तरह भगवान् सभी के मनोरथों को पूरा करते थे। और ये जो गोपियाँ हैं वे तो जीवन्मुक्त साधु संत है जिन्होंने भगवान् श्री कृष्ण के साथ लीलाओं में भाग लेने के लिए अवतार लिया है।

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