Sunday 15 July 2018

50 गुप्त ज्ञान की बातें जो हमें परमात्मा की ओर ले जाती हैं


1. एक भगवान के सिवाय ऐसी कोई चीज नहीं, जो सदा हमारे साथ रहे और हम सदा उसके साथ रहें। 

2. करना हो तो सेवा करो, जानना चाहते हो तो अपने आप को जानो, मानना चाहते हो तो प्रभु को मानो।  

3. जैसे बिना चाहे सांसारिक दु:ख मिलता है, ऐसे ही बिना चाहे सुख भी मिलेगा, अत:  सांसारिक सुख की कभी कामना न करो। 

4. सांसारिक पदार्थों को लेकर जो अपने को बड़ा मानता है, उसको ये सांसारिक पदार्थ तुच्छ बना देते हैं। 

5. मनुष्य संसार में जितनी चीजों को अपनी और अपने लिए मानता है, उतना ही वह दुःख में फसता है। 

6. भगवत प्राप्ति के लिए हुई व्याकुलता समस्त  बाधाओं को दूर कर जीव को  भगवान के पास पहुँचा देती है। 

7. दूसरे का गुण ही देखें, अवगुण कभी  न देखें, मनुष्य को गुणग्राही होना चाहिए। 

8. अपने को भगवान की प्राप्ति के मार्ग में लगाना परम सेवा है, लाख आदमियों की भौतिक सेवा की अपेक्षा एक आदमी की परम सेवा बढ़कर है।

9. जिन वस्तुओं को हम अपनी मानते हैं वे सदा हमारे साथ रहेंगी क्या ? महापुरुषों का संग, दर्शन, भाषण और स्मरण ये सभी महान फल दायक होते हैं।

10. अपने को भगवान के चरणों में और शरीर को संसार की सेवा में सौंप देना चाहिए।

11. जो दूसरे के दुःख से दुखी होते हैं, उसे अपने दुःख से दुखी नहीं होना पड़ता।

12. अपनी सुख सुविधा दुखियों तथा दीनों से ली हुई समझकर उन्हें सम्मानपूर्वक ब्याज समेत लौटानी चाहिए।

13. प्राप्त परिस्थतियों के सदुपयोग को ही पुरूषार्थ, कर्तव्य, और साधन नाम कहते हैं।

14. शरीर निर्वाह के लिए तो चिंता करने की जरुरत ही नहीं है, पर शरीर छूटने के बाद क्या होगा इसके लिए चिंता करने की बहुत जरुरत है।

15. सबके साथ भलाई करो, यदि तुम्हारे साथ कोई बुराई करता है तो उसकी जिम्मेवारी उस पर है, तुम उसकी देखा देखी अपने मन को कलुषित करके कर्तव्य से न हटो।

16. कोई भी व्यक्ति आपको गाली देता है तो उसको जबाब गली देकर मत दो, उदहारण से समझते हैं, जैसे जब कोई व्यक्ति तुम्हारे घर खाना खाने आता है तो उसको आप खाना सर्व करते हैं चाय, पानी जूस आदि देते हैं, यदि वो आपका खाना न खाये तो वो खाना उस व्यक्ति के पास चला जाता है जिसने खाना सर्व किया है। तो ठीक उसी प्रकार यदि कोई आपको गाली भी दे तो उसको आप स्वीकार न करें यदि आप उसकी गाली का जबाब गाली  से देंगे तो दुसरे व्यक्ति द्वारा दी गयी गली आपने स्वीकार कर ली। यदि आप उसकी गाली को स्वीकार नहीं करेंगे तो जिस व्यक्ति ने आपको गाली दी है उसी के पास लौट जाएगी। और एक कहावत ये भी है कि क्षमा से बढ़कर प्रतिशोध दूसरा कोई नहीं है।

17. चार बातों को याद रखो, बड़े बूढ़ों का आदर करना, छोटों की रक्षा करना और उन पर स्नेह करना, बुद्धिमान से सलाह लेना।

18. जो व्यक्ति आपके हमेशा Against रहता हो तो मान लो उससे बात करने से बचें क्यों कि जरुरी नहीं है कि जो आपके हमेशा Against रहता हो वो सही हो। क्यों कि यदि कोई आपके हमेशा Against ही रहता हो तो फिर उसके मन में हमेशा आपके प्रति घृणा ही होगी।

20.  चार अवस्थाओं में आदमी बिगड़ता है, इसलिए इनसे सावधान रहना चाहिए , जवानी, धन, अधिकार, और अविवेक।

21. धन के साथ दो लुटेरे लगे रहते हैं, जो निरंतर आदमी के दैवीय गुणों को लूटते रहते हैं, एक है अभिमान और दूसरा है खुशामदी।

22. यदि आप कोई भी काम इस मकसद से करते हों कि लोग आपकी बड़ाई करें, तो समझ लो कि आपको लोगों की बुराई का सामना करना पड़ेगा ये सार्वभौम सत्य है। तो हमेशा कोई भी भलाई का कार्य करने पर अपने मन में ये भावना होनी चाहिए कि सब करने कराने वाले भगवान् हैं। में तो एक निमित्त मात्र हूँ।  और उस  भलाई के कार्य को कभी भी किसी से नहीं कहना चाहिए और यदि आपके किये हुए कार्य के बारे में कोई आपकी बुराई करता है तो समझ लो उसने भगवान का अपमान किया है, क्यों कि आप तो सिर्फ निम्त मात्र हो।  परन्तु होता उल्टा है हम किसी भले काम को करते हैं और जो भी आता है उससे कहते हैं कि मैंने ये करवाया है वो करवाया है। परन्तु फिर भी आपको सभी से बुराई मिलती है और फिर सभी को अपना Justification देते फिरते हैं। परन्तु आप को सिर्फ बुराई  ही मिलती है।

23. भगवान का आश्रय कल्याण करने वाला है और रुपये आदि नाशवान वस्तुओं का आश्रय पतन करने वाला है।

24. मुझे केवल परमात्मा की और ही चलना है, ऐसी निश्चयातिम्का बुद्धि सम्पूर्ण साधनों की मूलभूत साधना है।

25. शुभ कर्म करने का स्वभाव ऐसा सुन्दर धन है कि जिसे न शत्रु छीन सकता है और न चोर चुरा सकता है।

26. विश्वास भगवान पर ही करना चाहिए, नाशवान वस्तुओं पर विश्वाश करने पर धोखा ही होगा, दुःख ही पाना पड़ेगा।

27. जो दिखता है, उस संसार को अपना नहीं मानना है, तथा उसकी सेवा करनी है, और जो नहीं दिखता, उस भगवान को अपना मानना है तथा उसको याद करना है।

28. मेरा कुछ नहीं, मुझे नहीं चाहिए, और मुझे अपने लिए कुछ नहीं करना, ये तीनों बातें जल्द ही उद्धार करने वाली हैं।

29. जीवन तभी कष्टमय होता है, जब वस्तुओं की इच्छा करते हैं, और मृत्यु तभी कष्टमय होती है, जब जीने की इच्छा करते हैं।

30. खास बात ये है कि आत्मा तो हमेशा से मुक्त होती है, और शरीर  नहीं सकती सिर्फ हमारा मन ही है जो कि सांसारिक बन्धनों से मुक्त हो सकता है। और मन की मुक्ति केवल तभी हो सकती है जब हम भगवान की  शरण ग्रहण करें।

31. जिस भक्त को अपने में कुछ भी विशेषता नहीं दिखती, अपने में किसी बात का अभिमान नहीं होता उस भक्त में भगवान की  विलक्षण शक्ति उतर आती है।

32. भगवान ने कृपा करके यह शरीर दिया है इसमें भी सत्संग का मौका मिल जाये तो समझना चाहिए कि भगवान ने  बहुत विशेष  की है।

33. जिसके हृदय में रुपयों का महत्व है उसके संग से बड़ी हानि होती है और जिनके हृदय में भगवान का महत्व है उसके संग से बड़ा लाभ होता है।

34. अपने कल्याण की उत्कट अभिलाषा वाला मनुष्य हर एक परिस्थिति में परमात्मवत को प्राप्त कर सकता है।

35. संसार तथा शरीर कभी भी हमारे साथ नहीं रहे और परमात्मा कभी भी हमारे से अलग नहीं हुए।

36. छोटा से छोटा तथा बड़ा से बड़ा जो भी कर्म किया जाये उसमे साधक को सावधान रहना चाहिए कि कहीं किसी स्वार्थ की भावना से तो कर्म नहीं हो रहा है।

37. संसार में कोई भी नौकर को अपना मालिक नहीं बनाता परन्तु भगवान शरणागत भक्त को अपना मालिक बना लेते हैं। ऐसी उदारता केवल प्रभु में ही है।

38. प्रत्येक मनुष्य को भगवान की तरफ ही चलना पड़ेगा, चाहे आज चले या अनेक जन्मों के बाद, तो  फिर देरी क्यों, इसी वक्त से चलना शुरू कर दो।

39. संसार में ऐसी कोई परिस्तिथि नहीं है, जिसमें मनुष्य का कल्याण न हो सकता हो, कारण कि परमात्मा प्रत्येक परिस्तिथि में सामान रूप से विद्यमान है।

40. जो सभी का होता है वही हमारा होता है, जो किसी भी समय किसी का नहीं होता, वह हमारा हो ही नहीं हो सकता है।

41. भोगों की प्राप्ति सदा के लिए नहीं होती और सबके लिए नहीं होती, परन्तु भगवान की प्राप्ति सदा के लिए होती है और सबके लिए होती है।

42. संत महापुरुषों की सबसे बड़ी सेवा है उनके सिद्धांतों के अनुसार अपना जीवन बनाना।  कारन कि उन्हें सिद्धांत जितने प्रिय होते हैं, उतने अपने प्राण प्रिय नहीं होते।

43. भगवान की प्राप्ति केवल उत्कट अभिलाषा से होती है, उत्कट अभिलाषा जाग्रत न होने में मुख्य कारण सांसारिक भोगों की कामना ही है।

44. दूसरों के दोष दर्शन, पर निंदा और वृद्धों तथा सत्पुरुषों अपमान करने में मनुष्यों का अभिमान ही प्रधान कारण है।

45. एक बार शरणगत होकर जो कहता प्रभु में तेरा तो भगवान उसे सभी भय से मुक्त कर देते हैं, ये भगवान का व्रत है।

46. जो कभी भी अपने से अलग होता है, उसको सर्वथा ही अलग स्वीकार करना तथा जो कभी भी अपने से अलग नहीं होता उसको कभी अलग स्वीकार न करना साधक का परम कर्तव्य है।

47. मिलने वाली प्रत्येक  वस्तु बिछुड़ने वाली है, परन्तु जो नित्य प्राप्त परमात्मा हैं वे कभी भी किसी अवस्था में नहीं बिछुड़ते हैं, चाहे उनका अनुभव हो या न हो।

48. भलाई करने से समाज की सेवा होती है, बुराई रहित होने से विश्व मात्र की सेवा होती है, कामना से रहित होने पर अपनी सेवा होती है और भगवान में मन लगा कर संसार के मोह से रहित होने से भगवान की सेवा होती है।

49.  धन से वस्तु श्रेष्ठ है, वस्तु से मनुष्य श्रेष्ठ है, मनुष्य से विवेक श्रेष्ठ है, और विवेक से ज्यादा श्रेष्ठ भगवान हैं, और  भगवान् से श्रेष्ठ उनके भक्त हैं, भक्त से ज्यादा श्रेष्ठ सत्संग है, और सत्संग से ज्यादा श्रेष्ठ भगवान का नाम जप है।

50. दूसरों की बुराई करने से पाप कैसे लगता है जैसे की बुराई करने से पहले वो किसी व्यक्ति के बारे में  बुरा सोचेगा, और उसके  बारे में बुरा ही सुनेगा, और फिर क्रोध आएगा और क्रोध आने पर बुद्धि खराब हो जाती है और वह क्रोध में कोई न कोई पाप ही करेगा इसलिए कहा जाता है कि दूसरों की बुराई करने से पाप लगता है। 

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