Monday 7 May 2018

क्या है कालसर्प-दोष, क्यों होता है, इसकी प्रमाणिकता एवं इसके असर क्या हैं और सही उपाय क्या हैं

कैसे बनता है कालसर्प
लग्न कुंडली में सातों सूर्यादि गृह जब राहू और केतु के बीच स्थित होते हैं तो कुंडली में कालसर्प दोष का निर्माण होता है! मान लो यदि कुंडली के द्वतीय घर में राहू स्थित है और दशम घर में केतु तो बाकी के सभी ग्रह 4 से 10 वे या 10 से 4 वे घर के बीच में ही होने चाहिए! यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि सभी ग्रहों के अंश राहू और केतु के अंश के बीच होने चाहिए, यदि कोई गृह की डिग्री राहू और केतु की डिग्री से बाहर आती है तो पूर्ण कालसर्प योग स्थापित नहीं होगा, इस स्थिति को आंशिक कालसर्प कहेंगे ! कुंडली में बनने वाला कालसर्प कितना दोष पूर्ण है यह राहू और केतु की स्थिति या अन्य ग्रहों से योग पर आधारित होगा यानि ज्योतिष का सही विद्वान ही निर्धारित कर सकेगा।

वैज्ञानिकता
कुछ तथ्य जिनको समझना आवस्यक है, कुछ तथाकथित बुद्धिमान कहते हैं कि कालसर्प अभी इस सदी में ही सामने आया है, पहले नही होता था। ये उचित कथन नहीं है, ये योग तो पहले भी होता था दूसरे नामों से जाना जाता था, ये नाम इस सदी में प्रचलित हुआ।

कुछ लोगों का तर्क है कि इसका वैज्ञानिक प्रभाव मानव जीवन पर कैसे हो सकता है ?
अब ध्यान दें प्रथ्वी पर 2/3 भाग जल क्षेत्र है और मनुष्य की देह में भी लगभग 2/3 भाग जल है। जब मात्र दो ग्रह ( सूर्य+चंद्र) एक दिशा (एक सीध) में होते हैं तो प्रथ्वी और समुद्र के संतुलन को (ज्वार-भाटे) के रूप में असंतुलित कर देते हैं यानि प्रथ्वी के गुरुत्वाकर्षण नियम को डगमगा देते हैं, तो सभी सात ग्रह (सूर्य, चंद्र, भौम, बुध, जीव, शुक्र व शनी) जब एक दिशा में रहते होंगे तब प्रथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के संतुलन का क्या हाल होगा और जब प्रथ्वी पर दो तिहाई जल का संतुलन डगमगाने वाली स्थिती बन जाती है तो यही स्थिती मनुष्य देह के दो-तिहाई (तरल और ठोष) के संतुलन को प्रभावित करके मूल स्वभाव को असंतुलित नहीं करती होगी क्या ? अशुभता प्रदान नहीं करती होगी ?

कालसर्प दोष का प्रभाव:-
सामान्यता कालसर्प योग जातक के जीवन में संघर्ष ले कर आता है ! इस योग के कुंडली में स्थित होने से जातक जीवन भर अनेक प्रकार की मानसिक, दैहिक, व भौतिक कठिनाइयों से जूझता रहता है ! और उसे सफलता उसके अंतिम जीवन में प्राप्त हो पाती है, जातक को जीवन भर घर, बहार, काम काज, स्वास्थ्य, परिवार, विवाह, कामयाबी, नोकरी, व्यवसाय आदि की परेशानियों से सामना करना पड़ता है ! बैठे बिठाये बिना किसी मतलब की मुसीबतें जीवन भर परेशान करती है ! कुंडली में बारह प्रकार के काल सर्प पाए जाते हैं, यह बारह प्रकार राहू और केतु की कुंडली के बारह घरों की अलग अलग स्थिति पर आधारित होते हैं ! कुंडली में स्थित यह बारह प्रकार के कालसर्प दोष कौन से हैं, आइये जानने की कोशिश करते हैं !

कालसर्प के द्वादश प्रकार
1. अनंत कालसर्प दोष
जब कुंडली के पहले घर में राहू, सातवें घर केतु और बाकी के सात गृह राहू और केतु के मध्य स्थित हों तो वह अनंत कालसर्प दोष कहलाता है ! अनंत कालसर्प दोष जातक की शादीशुदा जिन्दगी पर बहुत बुरा असर डालता है ! बीतते वक्त के साथ जातक और जातक के जीवन साथी के बीच तनाव बढता जाता है ! जातक के नाजायज़ सम्बन्ध बाहर हो सकते हैं ! इसी कारण बात तलाक तक पहुंच सकती है ! जातक के अपने जीवन साथी के साथ संबंधों में मधुरता नहीं होती ! अनंत कालसर्प दोष के कारण जातक जीवन भर संघर्ष करता है और पूर्णतया सफलता प्राप्त नहीं करता ! संधि, व्यापार, साझेदारी, आत्मसंमान, वैवाहिक सुख और जीविकोपार्जन में सफलता नहीं मिलती !

2. कुलिक कालसर्प दोष
जब कुंडली के दुसरे घर में राहू और आठवें घर में केतु और बाकी के सातों गृह राहू और केतु के मध्य स्थित हो तो यह कुलिक कालसर्प दोष कहलाता है ! जिस जातक की कुडली में कुलीक कालसर्प दोष होता है, वह जातक खाने और शराब पीने की गलत आदतों को अपना लेता है ! तम्बाकू, सिगरेट आदि का भी सेवन करता है, जातक को यह आदते कम उम्र से ही लग जाती हैं, इस कारण जातक का पढाई से ध्यान हट कर अन्य गलत कार्यों में लग जाता है ! ऐसे जातकों को यूरिन, वीर्य, गुर्दा, बवासीर, कब्ज, मुह और गले के रोग अधिक होते हैं, धन की कमी रहती है। तथा इन जातको का वाणी पर नियंत्रण नहीं होता इसलिए समाज में बदनामी भी होती है ! कुलिक कालसर्प से ग्रस्त जातकों की नशा या मदहोशी में वाहन चलाने से भयंकर दुर्घटना हो सकती है !

3. वासुकी कालसर्प दोष
जब कुंडली में राहू तीसरे घर में, केतु नौवें घर में और बाकी के सभी गृह इन दोनों के मध्य में स्थित हों तो वासुकी कालशर्प दोष का निर्माण होता है ! जिन जातकों की कुंडली में वासुकी कालसर्प दोष होता है उन्हें जीवन के सभी क्षेत्र में बुरी किस्मत की मार खानी पड़ती है, कड़ी मेहनत और इमानदारी के बावजूद असफलता हाथ आती है ! जातक के छोटे भाई और बहनों या उनसे संबंधों पर बुरा असर पड़ता है ! जातक को लम्बी यात्राओं से कष्ट उठाना पड़ता है और धर्म कर्म के कामों में विस्वास नहीं रहता है ! कालसर्प दोष के कारण जातक की कमाई भी बहुत कम हो सकती है तथा नौकरी, तरक्की, व्यापार व भाग्योदय बार-बार रुकावटें आती हैं इस कारण से जातक को लाचारी का जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है।

4. शंखपाल कालसर्प दोष
कुंडली में राहू चौथे घर में, केतु दसवें घर में और बाकी सभी गृह राहू और केतु के मध्य स्थित हो तो शंखपाल कालसर्प दोष का निर्माण होता है ! जिन जातकों की कुंडली में शंखपाल कालसर्प दोष होता है वें जातक बचपन से ही गलत कार्यों में पड़कर बिगड़ जाते है, जैसे पिता की जेब से पैसे चुराना, विद्यालय से भाग जाना, गलत संगत में रहना और चोरी चाकरी और जुआ आदि खेलना ! यदि माता पिता द्वारा समय रहते उपाय किये जाए तो बच्चों को बिगड़ने से बचाया जा सकता है !  जातक की माता को जीवन बहुत परेशानिया झेलनी पड़ती है, यह परेशानियां मानसिक और शारीरिक दोनों हो सकती हैं ! जातक को विवाह का सुख भी अधिक नहीं मिलता, पति या पत्नी से हमेसा  अनबन बनी रहती है ! अधिकतर दुखी रहता है।

5. पदम् कालसर्प दोष
कुंडली में जब राहू पांचवें घर में , केतु ग्यारहवें घर में और बाकि के सभी गृह इन दोनों के मध्य स्थित होते हैं तो पदम् कालसर्प दोष का निमाण होता है !  जातक को जीवन में कई कठनाइयों का सामना करना पड़ता है ! शुरूआती जीवन में जातक की पढाई में किसी कारण से बाधा उत्पन्न होती है, यदि शिक्षा पूरी न हो तो नौकरी मिलने में परेशानियाँ उत्पन्न होती हैं ! विवाह के उपरान्त बच्चों के जन्म में कठनाई और बच्चों का बीमार रहना जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है ! पदम् कालसर्प के बुरे प्रभाव से प्रेम में धोखा मिल सकता है, कुबुद्धि के शिकार हो सकते हैं, बुरी संगत के कारण इस दोष का विद्यार्थियों के जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ता है, उन्हें इस काल सर्प का उपाय अवश्य करना चाहिए क्योंकि  हमारा पूरा जीवन अच्छी शिक्षा पर आधारित होता है। 

6. महापदम कालसर्प दोष
कुंडली में महापदम् कालसर्प का निर्माण तब होता है जब राहू छठे घर में, केतु बारहवें घर में और बाकी के सभी गृह इन दोनों के मध्य स्थित हों ! महापदम् कालसर्प दोष जातक के जीवन में नौकरी, पेशा, बीमारी, खर्चा, जेल यात्रा जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म देता हैं ! जातक जीवन भर नौकरी पेशा बदलता रहता है क्योकि उसके सम्बन्ध अपने सहकर्मियों से हमेशा ख़राब रहते हैं ! हमेशा किसी न किसी सरकारी और अदालती कायवाही में फसकर जेल यात्रा तक करनी पढ़ सकती है ! तरह तरह की बिमारियों के कारण जातक को आये दिन अस्पतालों के चक्कर काटने पड़ते हैं ! विषेशतः बीमारी, शत्रुओं, और कर्ज से सदैव पीडित रहता है। इस प्रकार महापदम् काल सर्प दोष जातक का जीना दुश्वार कर देता है !

7. तक्षक कालसर्प दोष
कुंडली के सातवें घर में राहू, पहले घर में केतु और बाकि गृह इन दोनों के मध्य आ जाने से तक्षक कालसर्प दोष का निर्माण होता है ! सबसे पहले तो तक्षक काल सर्प का बुरा प्रभाव उसकी सेहत पर पड़ता है ! जातक के शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति बहुत कम होती है और इसलिए वह बार-बार बीमार पड़ता रहता है तथा सैक्सुअल परेशानी भी हो सकती ! दूसरा बुरा प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन पर पड़ता है, या तो जातक के विवाह में विलम्ब होता है और यदि हो भी जाये तो विवाह के कुछ सालों के पश्चात् पति पत्नी में इतनी दूरियाँ आ जाती है की एक घर में रहने के पश्चात् वे दोनों अजनबियों जैसा जीवन व्यतीत करते हैं ! जातक को अपने व्यवसाय में सहकर्मियों द्वारा धोखा मिलता है और भारी आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ता है! ये 36 से 42 की आयु में अधिक प्रभावी रहता है।

8. कर्कोटक कालसर्प दोष
कुंडली में जब राहू आठवें घर में, केतु दुसरे घर में और बाकि सभी गृह इन दोनों के मध्य फसें हों तो कर्कोटक कालसर्प दोष का निर्माण होता है ! कर्कोटक कालसर्प दोष के प्रभाव से जातक के जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ता है, जातक हमेशा सभी के साथ कटु वाणी का प्रयोग करता है, जिस वजह से उसके सम्बन्ध अपने परिवार से बिगड़ जाते है और वह उनसे दूर हो जाता है ! कई मामलों में पुश्तैनी जायजाद से भी हाथ धोना पड़ता है! जातक खाने पीने की गलत आदतों की वजह से अपनी सेहत बिगाड़ लेता है, कई बार ज़हर खाने  या आत्महत्या के कारण मौत भी हो सकती है ! पारिवारिक सुख न होने की वजह से कई बार विवाह न होने, विवाह देरी जैसे फल मिलते है, लेकिन इस दोष की वजह से जातक को शारीरिक संबंधो की हमेशा कमी रहती है और वह विवाह सुख का पूर्ण आनंद नहीं प्राप्त करता !

9. शंखनाद कालसर्प दोष
कुंडली के नौवें घर में राहु, और केतु तीसरे घर में हों तथा बाकी गृह इन दोनों के मध्य फसें हों तो इसे शंखनाद कालसर्प कहते है ! जातक के जीवन पर बुरा असर पड़ता है, जातक को जीवन के किसी भी क्षेत्र में किस्मत या भाग्य का साथ नहीं मिलता, बने बनाये काम बिना किसी कारण के बिगड़ जाते हैं।  जातक को जीवन चर्या के लिए अधिक मेहनत करनी पड़ती है! जातक के बचपन में उसके पिता पर इस दोष का बुरा असर पड़ता है और लोग कहते हैं कि इस बच्चे के आने के बाद घर में समस्याए आ गयी ! यह कालसर्प एक तरह का पितृ दोष का निर्माण भी करता है, जिसके प्रभाव से जातक नाकामयाबी, प्रत्यारोप, मानहानि, पित्रश्राप, भाग्यहीनता और आर्थिक संकट जैसी परेशानियों से जूझना पड़ता है !

10. घटक (पातक) कालसर्प दोष
कुंडली में जब राहू दसवें घर में और केतु चौथे घर में और बाकि सभी गृह इन दोनों के मध्य  फसें हों तो घटक कालसर्प दोष का निर्माण होता है !  जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है, जातक हमेशा व्यवसाय और नौकरी की परेशानियों से जूझता रहता है, यदि वह नौकरी करता है तो उसके सम्बन्ध उच्च अधिकारीयों से ठीक नहीं रहते, तरक्की नहीं होती, कई वर्षों तक एक ही पद पर कार्यरत रहना पड़ता है ! और इसीलिए किसी भी काम से शंतुष्टि नहीं होती, और बार बार व्यवसाय या नौकरी बदलनी पड़ती है ! इस कालसर्प का माता पिता की सेहत और उनसे संबंधों पर भी बुरा असर पड़ता है और किसी कारण से जातक को उनसे पृथक होकर रहना पड़ता है पैत्रक संपदा विहीन भी हो सकता है। 

11. विषधर (विषाक्त) कालसर्प दोष
राहू ग्यारहवें स्थान पर, केतु पाचवें स्थान पर और बाकी सभी गृह इन दोनों के मध्य होने से कुंडली में विषधर कालसर्प दोष का निर्माण होता है ! इस दोष के कारण जातक को नेत्र, अनिद्रा और हृदय रोग होते हैं, बड़े भाई बहनों से सम्बन्ध अच्छे नहीं चलते, अदालत आदि के चक्कर लगाना ! जातक की याददाश्त कमज़ोर होती है, इसीलिए वह पढाई ठीक से नहीं कर पाते! जातक को हमेशा व्यवसाय में उचित आय नहीं मिलती, जातक अधिक पैसा लगाकर कम मुनाफा कमाता है ! इस योग के चलते जातक को आर्थिक परेशानियाँ बनी रहती हैं।प्रेम सम्बन्ध में धोखा मिलता है और विवाह के उपरान्त बच्चों के जन्म में समस्याएं आती हैं, जन्म के बाद बच्चों की सेहत भी खराब रहती है या संतान से अपमान भी मिलता है, बुढापा दुखी रहता है !

12. शेषनाग कालसर्प दोष
कुंडली के बारहवें घर में राहू, छठे घर में केतु और बाकी सभी गृह इन दोनों के मध्य  होने से शेषनाग कालसर्प दोष का निर्माण होता है !  जीवन में कई समस्याएं उत्पन्न करता है ! जातक हमेशा गुप्त दुश्मनों से परेशान रहता है, उसके गुप्त दुश्मन अधिक होते हैं, जातक हमेशा कोई बीमारीयों से घिरा रहता है इसलिए सर्जरी या बार-बार अस्पताल में एडमिट रहने से उसके इलाज पर अधिक खर्चा होता है ! इस दोष के कारण जातक जन्म स्थान से दूर रहना पड़ता है, गलत कार्यों में भाग लेने से जेल यात्रा भी संभव है ! 

कालसर्प से राहत पाने के कुछ उपाय
1. नित्य शिव-उपासना-अभिषेक, या महाम्रत्युंजय (18 माला) प्रतिदिन करते रहने से कालसर्प दोष प्रभावित नहीं करता।

2. काले पत्थर की नाग-प्रतिमा और शिवलिंग बनवाकर उसका मंदिर निर्माण करके प्राण-प्रतिष्ठा करवा देने से ये दोष सदैव के लिऐ शान्त हो जाता है।

3. किसी सिद्ध और प्रसिद्ध शिवलिंग के नाप से ताँवे का सर्प प्राणप्रतिष्ठा करवा के ब्रह्ममुहूर्त में चुपचाप किसी को बिना बताऐ शिवलिंग पर चढाने से भी काफी समय तक कालसर्प दोष का प्रभाव नहीं होता।

4. अगर कभी जातक की लम्बाई बराबर का मृत साँप कभी मिल जाऐ तो घी और रक्त-चंदन से उसका दाह-संस्कार करके तीन दिन का सूतक माने और फिर वैदिक रीति से तेरवीं आदि पूरे मृत्यु-संस्कार करके सोने-चाँदी के नाग-नागिन पवित्र जल में मंत्र विधी से प्रवाहित कर दें तो कालसर्प दोष का असुभ प्रभाव नहीं होता।

5. उचित मुहुर्त में उज्जैन या नाशिक में जाकर वैदिक-तंत्र विधी से नागवली अनुष्ठान करवा के वहीं पर लघुरुद्र-अभिषेक करने से कालसर्प-दोष शान्त हो जाता है।

6. मोर या गरुड़ के चित्र पर "नाग-विषहरण" मंत्र लिखकर स्थापित करके उसी मंत्र का 18000 बार जाप करके दशांश होम, तर्पण, मार्जन करके ब्राह्मणों को दूध से निर्मित भोजन कराकर उचित दक्षिणा देकर संतुष्ट करें तो कालसर्प का दोष शान्त हो जाता है।

7. अपने घर में सही तंत्र विधी से अभिमंत्रत नाग-गरुड़ बूटी को स्थापित करके तथा इस बूटी का अभिमंत्रित  टुकड़ा जातक को ताबीज की तरह धारण कराने से भी कालसर्प दोष शान्त रहता है।

8. कालसर्प लौकेट (गोमेद+लहसुनियां) इन दोंनों रत्नों को सही पंचधातु में लौकेट बनवाकर राहु और केतु के मंत्रों का पूर्ण जाप तथा दशांश होम, तर्पण, मार्जन करके  अभिमंत्रत करके हृदय पर धारण करें।
       
विषेश दुखदायी योग और सर्वश्रेष्ठ उपाय
यदि कालसर्प के साथ पित्र-दोष, पित्रश्राप, प्रेत-योग,  विष-योग, चंडाल-योग, अंगारक-योग या ग्रहण-योग आदि में से भी कोई योग बन रहे हों तो बहुत ही दुखदायी हो जाता है तथा आत्यधिक कष्टों का सामना करना पड़ता है।

स्थाई उपचार
अतः ऐसे जातकों को अतिशीघ्र किसी योग्य ज्योतिष व तंत्र विद्वान के मार्गदर्शन में इन दोषों का शान्ती-विधान वैदिक-तंत्र विधी से किसी वैदिक मान्यता प्राप्त (तीर्थ) स्थान पर करवा लेना चाहिऐ। ये ही स्थाई और सर्वोत्तम उचित होगा ।

विशेष 
भगवान् श्री कृष्ण का नाम जप सभी प्रकार के तापों का नाश कर देता है तो ये कालसर्प क्या चीज है, किसी भी  परिस्थिति में भगवान् श्री कृष्ण के नाम का उच्चारण करना मत भूलो। 

1 comment:

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