Friday 18 January 2019

बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता

Mahabharat
कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत का भीषण युद्ध चल रहा था। यह युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच हो रहा था। दोनों पक्षों में विश्व विख्यात वीर थे, श्री कृष्ण के बाद सबसे बड़े वीर पितामह भीष्म थे। श्री कृष्ण जी ने उस युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ले ली थी। श्री कृष्ण जी पांडवों की ओर थे और पितामह भीष्म कौरवों के प्रधान सेनापति थे। और भीष्म पितामह कौरवों और पांडवों दोनों के पितामह थे।

जब युद्ध हो रहा था तो दुरात्मा दुर्योधन के मन में ये आया कि पितामह भीष्म पांडवों का जान पूछ कर वध नहीं कर रहे हैं क्यों कि वे कौरवों की तरह पांडवों के भी पितामह थे। तो दुर्योधन उनपर राजद्रोह का दोष लगाता है और कहता है कि आपने पांडवों को इसलिए नहीं मार रहे हैं कि वो भी आपके नाती और पोते लगते हैं आपका उनके प्रति प्रेम है और उस प्रेम के कारण आप उनको नहीं मार रहे हैं जबकि आपने ये प्रतिज्ञा की थी कि आप राजसिंहासन के प्रति पूर्ण समर्पित रहेंगे। रिश्ते और नाते आपके लिए कोई महत्व नहीं रखेंगे।

जब बार बार दुर्योधन के आक्षेपों से पितामह आहत हो गए तो उन्होंने क्रोध में आकर ये प्रतिज्ञा कर ली कि या तो कल पृथ्वी पांडवों से विहीन हो जाएगी या कल में अपने प्राण त्याग दूंगा। जब कौरवों ने ये प्रतिज्ञा सुनी तो उनके मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी। क्यों कि पितामह के पुरुषार्थ को सभी जानते थे कि वो भगवान् परशुराम के शिष्य थे और उन्होंने भगवान् परशुराम को भी युद्ध में संतुस्ट किया था। उनसे बड़े वीर सिर्फ भगवान् श्री कृष्ण थे और उन्होंने महाभारत के युद्ध में शस्त्र न उठाने का प्रण ले लिया था और अब कोई ऐसा वीर नहीं है जो पांडवों को पितामह भीष्म से बचा सके और सबने सोचा कि अब तो कल पांडव मारे जाएंगे और हम युद्ध जीत जायेंगे और पूरी पृथ्वी पर हमारा साम्राज्य हो जायेगा।

परन्तु  भगवान् श्री कृष्ण जी को जब ये पता लगा कि पितामह भीष्म ने पांडवों को मारने की प्रतिज्ञा कर ली है तो वो कैसे अधर्म को जीत जाने देते। और उन्होंने तुरंत ही द्रोपदी के कक्ष में प्रवेश किया और द्रोपदी को उठाया और कहा कि द्रोपदी उठो तुम इस विकट संकट के समय सो रही हो तुम्हारे पति के प्राण संकट में हैं। तो द्रोपदी घबरा गयी और बोली हे केशव क्या बात हुई तो श्री कृष्ण जी ने कहा कि ये समय कुछ भी बताने का नहीं तुम तुरंत पितामह भीष्म के कक्ष में चलो बाकी की बात रास्ते में बताता हूँ।

इस तरह श्री कृष्ण जी द्रोपदी को साथ लेकर पितामह के पास जाने लगे और द्रोपदी से कहा कि ब्रम्ह मुहूर्त की वेला में पितामह भीष्म ईश्वर का ध्यान कर रहे हैं और तुम उनके पास मुँह ढककर उनसे आशीर्वाद मांगो ध्यान रहे कि पितामह तुम्हारा मुँह न देख पाएं। और इस तरह श्री कृष्ण और द्रोपदी पितामह के कक्ष के पास पहुंचे तो द्रोपदी की पादुकाएं आवाज कर रही थीं तो श्री कृष्ण जी ने द्रोपदी से कहा कि तुम्हारी चप्पल आवाज कर रही हैं और पितामह चप्पलों आवाज सुनेंगे तो वे सावधान हो जायेंगे और तुमको पहचान लेंगे। और श्री कृष्ण जी ने द्रोपदी की चप्पल उतरवा दी और स्वयं अपने हाथ में ले लीं। और द्रोपदी ने ठीक वही किया जो श्री कृष्ण जी ने कहा था वो अपना मुँह ढककर पितामह जी के पास  दबी आवाज में बोली प्रणाम पितामह।

तो पितामह ने जैसे ही देखा कि कोई सुहागन स्त्री मेरे से आशीर्वाद लेने के लिए आयी है तो उनके मुँह से तुरंत ये निकल गया कि सौभाग्वती भवः।

फिर ऐसा बोलने के बाद पितामह ने कहा कि देवी तुम कौन हो तब द्रोपदी अपना मुँह दिखाते हुए बोली पितामह में आपकी पुत्र वधु द्रोपदी हूँ। और आपका आशीर्वाद लेने आयी हूँ। जैसे पितामह ने द्रोपदी को देखा तो वो सारा का सारा  रहष्य समझ गए कि द्रोपदी यहाँ इस समय आशीर्वाद लेने क्यों आयी है।

और उन्होंने तुरंत द्रोपदी से कहा श्री कृष्ण कहाँ हैं उनको भी तो अंदर बुलाओ तो द्रोपदी ने कहा कि पितामह तुमको कैसे मालूम कि मेरे साथ श्री कृष्ण भी आये हैं। तो पितामह ने कहा कि जो कूटनीति श्री कृष्ण जी ने रची है उसको श्री कृष्ण के इलावा और कोई नहीं रच सकता। तो द्रोपदी चौंकते हुए बोली की कूटनीति ! में समझी नहीं पितामह ये आप क्या कह रहे हैं।

तो पितामह भीष्म ने द्रोपदी को सारी  बात बताई और कहा कि द्रोपदी कल मैंने पृथ्वी को पांडवों से विहीन करने की प्रतिज्ञा ले ली थी और श्री कृष्ण से कोई बात कैसे छिपी रह सकती है वो तो साक्षात परमात्मा हैं। तो उन्होंने ये चाल चली कि  आज ब्रम्ह मुहूर्त में तुमको मेरे पास आशीर्वाद लेने के लिए भेज दिया और पुत्री में कभी झूट नहीं बोलता यदि में कोई आशीर्वाद भी देता हुँ तो उसे पूरा भी करता हुँ श्री कृष्ण जी को ये बात पता थी और आशीर्वाद में मेरे से ये वचन निकला कि सौभाग्वती भवः।

परन्तु हे द्रोपदी बिना पति के तुम सौभाग्यवती कैसे रह सकती हो और इस आशीर्वाद के कारण में पांडवों को मारूंगा नहीं और जब में अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर सकूंगा तो मुझे अपनी मृत्यु को ही चुनना पड़ेगा यही एक चाल थी जिससे एक तीर से दो निशाने लगे एक तो पांडवों का वध भी नहीं होगा और दूसरा जो पांडवों की जीत में सबसे बड़ा रोड़ा में भी कल मृत्यु का ग्रास बन जाऊँगा और इतनी बड़ी चाल ना तो पांडवों के दिमाग में आती और न तुम्हारे दिमाग में इसलिए मैंने कहा कि श्री कृष्ण कहाँ है ये चाल तो सिर्फ श्री कृष्ण जी की हो सकती है।

तब द्रोपदी ने श्री कृष्ण को बुलाया और तब पितामह भीष्म जी ने क्या दर्शन किये श्री कृष्ण जी के सर पर मोर मुकुट, गले में पीला पीताम्बर, और नंगे पाव, और हाथ की उँगलियों में द्रोपदी की पादुकाएं, मुख पर मन को मोह लेने वाली मुस्कान और कमर में बंसी लटकी हुई।

श्री कृष्ण को देखते ही पितामह मुग्ध हो गए और कुछ बोल न सके, तब पितामह को भगवान् श्री कृष्ण जी ने प्रणाम किया और फिर पितामह ने कहा कि हे श्री कृष्ण जिसकी रक्षा आप करते हों उसे कौन मार सकता है। प्रभु आपने मुझको अपने प्रपौत्र की हत्या से बचा लिया।

तब भगवान् श्री कृष्ण जी ने कहा कि पितामह इसमें मेरा कोई पुरषार्थ नहीं या मेरी कोई भी महानता नहीं है।बड़ों के दिए आशीर्वाद कवच की तरह काम करते हैं उनको कोई "अस्त्र-शस्त्र" नहीं भेद सकता जिसकी सहायता ईश्वर भी नहीं कर सकता उसकी सहायता बड़ों के दिए आशीर्वाद कर देते हैं। इसलिए किसी भी स्तिथि में अपने बड़ो और और माता पिता और गुरु का आशीर्वाद लेना चाहिए। 

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