Monday 14 January 2019

हनुमान जी के जन्म की विचित्र कहानी कृपया जरूर पढ़ें

Hanuman ji ke Janm ki Kahani
पुंजिदस्थला नाम की एक अति सुंदर अप्सरा थी। देवराज इंद्र ने उससे धरती पर जन्म लेने के लिए कहा और उसे आदेश दिया कि वह पवनदेव के समान वेगवान और देवाधिदेव महादेव के समान शक्तिशाली पुत्र उत्पन्न करे, जो भगवान श्रीराम का सर्वाधिक सहायक हो। पुंजिदस्थला ने देवराज इंद्र की आज्ञा पाकर वानरराज कुंजर की पुत्री के रूप में जन्म लिया । वह अत्यत रूपवती थी और इच्छानुसार कोई भी रूप धारण कर सकती थी। महामनस्बी वानरराज कुंजर ने अपनी पुत्री का नाम अंजना रखा और युवा होने पर उसका विवाह यूथपति वानरराज केसरी से कर दिया। दोनों पति-पत्नी सुखपूर्वक विहार करने लगे।

एक दिन की बात है कि अंजना ने एक अति सुंदर मानव युवती का रूप धारण किया और वह एक पर्वत शिखर पर विचरण करने लगी। उस समय वहा शीतल, मद और सुगंधित मलयानिल बह रही थी। उस मादक पवन के स्पर्श से उसके मन में काम-भाव प्रकट होने लगे। तभी उसके अद्‌भुत सौंदर्य पर पवनदेव मोहित हो गए। उन्होंने उसे अपने अंक में भर लिया। पवनदेव के स्पर्श से देवी अंजना चौंक पड़ी और बोली, अरे! तुम कौन हो ? मुझे क्यों इस प्रकार अपने अंक में भर रहे हो और मेरा आलिंगन कर रहे हो ? क्या तुम नहीं जानते कि मैं पतिव्रता स्त्री हूं। मेरा धर्म भ्रष्ट करके तुम क्यों पाप के भागी बनना चाहते हो ? क्या तुम्हें मेरे शाप का भी भय नहीं है ? तुम प्रत्यक्ष रूप में मेरे सामने आओ नहीं तो में शाप दे दूंगी।

अंजना की बात सुनकर पवनदेव उसके सामने प्रकट हो गए और बोले, ”हे देवी! मैं पवनदेव हूं। देवराज इंद्र की आज्ञा से पृथ्वी पर आया हूं। हम यहां भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम की सहायता के लिए वानर रूप में जन्म ले रहे हैं। मैंने मानसिक रूप से तुम्हारा आलिंगन किया है और मानसिक रूप से ही तुम्हारे साथ समागम भी किया है। इसलिए तुम्हारा पातिव्रत-धर्म मैंने नष्ट नहीं किया है। मेरे संसर्ग के कारण तुम्हें एक अत्यंत पराक्रमी, महातेजस्वी, धैर्यवान, महाबली और आकाशचारी पुत्र प्राप्त होगा, जो अपनी इच्छा से कहीं भी गमन कर सकेगा और विशाल से विशाल पर्वत को भी अपने हाथों पर उठा सकेगा। वह श्रीराम का परम भक्त होगा और समय पड़ने पर उनका सबसे बड़ा सहायक होगा।

पवनदेव के वचनों को सुनकर देवी अंजना हर्षित हो उठी और उसने पवनदेव को प्रणाम किया। पवनदेव के जाने के उपरांत देवी अंजना अपने निज गृह लौट आई और समय आने पर उसने एक अत्यंत स्वस्थ बालक को जन्म दिया। बालक के जन्म पर यूथपति वानरराज केसरी के दल में भारी उत्सव मनाया गया और वानरों ने खूब उछल-कूद मचाई। धीरे-धीरे बालक बड़ा होने लगा। और फिर उन्होंने भगवान श्री राम की बहुत मदद की। 

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