Monday 13 August 2018

बांके बिहारी(श्री कृष्ण) के चमत्कार कथा

1957 की बात है ये, एक दिल्ली का ही भक्त परिवार था, उस घर के मुखिया का नाम था मणिप्रकाश, जबसे उन्होंने भागवत की कथा को सुना, और बिहारी जी के बारे में सुना तबसे वो परिवार बिहारी जी के नाम का जप करने लगा। जब उनके परिवार ने बिहारी जी का दर्शन वृन्दावन में किया गया, तबसे वो परिवार बिहारी जी का ही हो गया। अक्सर वो दिल्ली का परिवार बिहारी जी का दर्शन करने के लिए वृन्दावन जाया करता था।

एक बार वो परिवार बिहारी जी का दर्शन करने के लिए जब गया, साथ में तीन बच्चे थे, एक बेटी और दो बेटे, छोटे छोटे बच्चे, उस समय वो ट्रैन से दिल्ली से मथुरा उतरे, ज्यादा कोई साधन नहीं था, वृन्दावन मथुरा के बीच में तांगे चलते थे, तो तांगे में बैठकर के पूरा परिवार बिहारी जी का दर्शन करने के लिए जब बांके बिहारी जी के मंदिर के समीप पहुँचा, तो आप लोगों ने देखा होगा जब मैन गली से हम जाते हैं तो वहाँ पुलिस चौकी है, आज भी है, वहाँ तक पहले तांगा जाता था, तो वो परिवार बच्चों को लेकर तांगे से उस पुलिस चौकी के पास जाकर के रुका और तांगे से जब उतरने लगे तो लगभग 1 बजे का समय हो गया था।

तब वहाँ किसी ने कहा कि बाबूजी आप आये हो, बिहारी जी का आपको दर्शन करना है तो जल्दी से जाओ, बिहारी जी की आरती होने वाली है, आपको शायद लेट हो जाओगे तो दर्शन नहीं मिलेगा।

तो झटपट उस व्यक्ति ने सोचा कि भई, बिहारी जी के दर्शन करने के लिए हम आये हैं और हमें लौटना भी है। तो वो तांगे से उतरा तो उस तांगे वाले ने कहा कि बाबूजी, आप ऐसा करिये मैं बच्चों को यहाँ संभालता हूँ, आप जल्दी से दोनों पति पत्नी जाएँ और बिहारी जी का दर्शन कर लें।

वो दोनों पति पत्नी बिहारी जी का दर्शन करने के लिए दौड़ करके मंदिर की ओर चले गए, इधर उस तांगे वाले के मन में, क्योंकि सामान भी रखा हुआ था, कुत्सित भावना हो गई, मन खराब हो गया। उधर वो पति पत्नी बिहारी जी का मंदिर में दर्शन कर रहे हैं और इधर वो तांगे वाला उनका सारा सामान और बच्चो को लेकर के वहाँ से उसने तांगा दौड़ा दिया, आज भी वो धर्मशाला है वहाँ, मुंगेर वाली धर्मशाला, जब आप मथुरा की ओर जायेंगे तो रास्ते में पड़ती है।

मुंगेर वाली धर्मशाला के पास जब उस तांगे वाले का तांगा पहुँचा, उधर दोनों पति पत्नी आरती करके बस निकल रहे थे, बिहारी जी के दर्शन करने के बाद दोनों की आँखों में आंसू बह रहे थे प्रेम के दोनों के बिहारी जी तो देख रहे थे ना कि क्या हो रहा है।

उस मुंगेर वाली धर्मशाला के पास जब तांगा पहुँचा तो उसी समय लगभग एक 10-12 वर्ष का एक बालक वहाँ साक्षात् प्रकट हो गया और वो तांगे के सामने जाकर के खड़ा हो गया रोक दिया तांगे को उस तांगे वाले को भागने नहीं दिया वो तांगे वाला समझ पाए कि ये कौन है, उतारकर के जो तांगे से आया तब तक वो बालक अंतर्ध्यान हो गया था, इधर वो तांगे वाला फिर तांगे पर बैठा और जो अपने घोड़ों की रास उसने खींची और लेकर के जब आगे बढ़ाने लगा तो आज उसके घोड़े आगे बढ़ें ही नहीं, घोड़े चले ही नहीं, बहुत चाबुक मारे लेकिन घोड़े आगे नहीं बढे।

इधर जब पुलिस चौकी के पास वो दोनों पति पत्नी बिहारी जी का दर्शन करके आये तो वहाँ ना तांगे वाला है, ना बच्चे हैं, ना सामान है, रोने लगे, तो लोगों ने कहा कि पुलिस चौकी सामने है, आप रिपोर्ट लिखवा दीजिये।

तो पत्नी ने कहा कि आप रिपोर्ट लिखवाओ, मैं तो बिहारी जी के द्वार पर जा रही हूँ, वो जरूर मेरे बच्चों को मेरे से मिलवाएंगे, मुझे पूर्ण विश्वास है, हमने अब तक जो बिहारी जी का नाम जप किया है, बिहारी जी के दर्शन करने का हमारे मन में निरंतर जो संकल्प रहा है अब बिहारी जी को ही लीला करनी है, क्योंकि भक्त का विश्वास ही विश्वासों फलदायक, वो लौटकर के आये तो बिहारी जी का मंदिर तो बंद हो गया था।

तो वह स्त्री मैन दरवाजे पर जाकर के सिर पटक पटक कर के वो रोने लगी, उधर पति भी बिहारी जी के मंदिर के द्वार पर रिपोर्ट लिखवाकर के आ गया दोनों रो रहे थे। उसी समय वो दौड़ा दौड़ा वो तांगे वाला बिहारी जी के मंदिर पर आया और उसने जब सारी बात बताई तो उसने कहा – बाबूजी, मेरे मन में पाप आ गया था, आप मुझे क्षमा करें, लेकिन आज मुझे ये बात समझ नहीं आई कि जब मैं आपके बच्चों को और सामान को लेकर के दौड़ रहा था उस तांगे को लेकर केतो 10 वर्ष का वो बच्चा जिसने मेरे तांगे को रोक दिया मेरे घोड़े आगे बढे नहीं। 

इतना जब उसने कहा तो पत्नी ने कहा कि वो कोई और बालक नहीं था वो साक्षात् बांके बिहारी थे वो बिहारी जी थे न जाने किस भेष में नारायण मिल जाये।

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