Sunday 18 March 2018

कैसे करें नवरात्री की पूजा जाने पूरी विधि विस्तार से

कैसे करें नवरात्री की पूजा जाने पूरी विधि विस्तार से
18 मार्च 2018 रविवार के शुभ मुहूर्त जैसे घटस्थापन, कलश-पूजन, श्रीदुर्गा पूजादि करना चा‍हिए। 18 मार्च 2018 रविवार घटता हुआ मुहूर्त समय 06 : 23 से 07 : 45 अवधि 1 घंटा 22 मिनट प्रतिपदा की तारीख प्रारम्भ 17 मार्च 2018  को 18 : 41 बजे। प्रतिपदा तिथि समाप्ति  18 मार्च 2018  को 18 : 31  बजे।

नवरात्र का प्रयोग प्रारम्भ करनेके पहले सुगन्धयुक्त तेल के उद्वर्तनादि से  मंगलस्नान  करके नित्यकर्म करे और स्थिर शान्तिके पवित्र स्थानमें शुभ मृत्तिका की वेदी बनाये। उसमें जौ और गेहूँ – इन दोनोंको मिलाकर बोये। वहीं सोने, चाँदी, ताँबे या मिट्टीके कलशको यथाविधि स्थापन करके गणेशादिका पूजन और पुण्याहवाचन करे और पीछे देवी ( या देव ) के समीप शुभासनपर पूर्व या उत्तर मुख बैठकर इस मंत्र का उच्चारण करे। 

“मम महामायाभगवती वा मायाधिपति भगवत प्रीतये आयुर्बलवित्तारोयसमादरादिप्राप्तये वा नवरात्रव्रतमहं करिष्ये।

यह संकल्प करके मण्डलके मध्यमें रखे हु‌ए कलशपर सोने, चाँदी, धातु, पाषाण, मृत्तिका या चित्रमय मूर्ति विराजमान करे और उसका आवाहन आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्त्रान, वस्त्र, गन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, ताम्बूल, नीराजन, पुष्पाञ्जलि, नमस्कार और प्रार्थना आदि उपचारों से पूजन करे।

स्त्री हो या पुरुष, सबको नवरात्र करना चाहिये। यदि कारणवश स्वयं न कर सकें तो प्रतिनिधि (पति पत्नी, ज्येष्ठ पुत्र, सहोदर या ब्राह्मण) द्वारा करायें। नवरात्र नौ रात्रि पूर्ण होनेसे पूर्ण होता है। इसलिये यदि इतना समय न मिले या सामर्थ्य न हो तो सात, पाँच, तीन या एक दिन व्रत करे और व्रतमें भी उपवास, अयाचित, नक्त या एकभुक्त जो बन सके यथासामर्थ्य वही कर ले।

यदि सामर्थ्य हो तो नौ दिनतक नौ (और यदि सामर्थ्य न हो तो सात, पाँच, तीन या एक ) कन्या‌ओंको देवी मानकार उनको गन्ध – पुष्पादिसे अर्चित करके भोजन कराये और फिर आप भोजन करे। व्रतीको चाहिये कि उन दिनोंमें भुशयन, मिताहार, ब्रह्मचर्यका पालन, क्षमा, दया, उदारता एवं उत्साहदिकी वृद्धि और क्रोध, लोभ, मोहादिका त्याग रखे।

चैत्रके नवरात्रमें शक्तिकी उपासना तो प्रसिद्ध ही हैं, साथ ही शक्तिधरकी उपासना भी की जाती है। उदाहरणार्थ एक ओर देवीभागवत कालिकापुराण, मार्कण्डेयपुराण, नवार्णमन्त्न के पुरश्चरण और दुर्गापाठकी शतसहस्त्रायुतचण्डी आदि होते हैं। 

कलश स्थापना विधि
नवरात्रि में कलश स्थापना देव-देवताओं के आह्वान से पूर्व की जाती है। कलश स्थापना करने से पूर्व आपको कलश और खेतरी को तैयार करना होगा जिसकी सम्पूर्ण विधि नीचे दी गयी है सबसे पहले मिट्टी के बड़े पात्र में थोड़ी सी मिट्टी डालें। और उसमें जवारे के बीज डाल दें।

अब इस पात्र में दोबारा थोड़ी मिटटी और डालें और फिर बीज डालें। उसके बाद सारी मिट्टी पात्र में दाल दें और फिर बीज डालकर थोडा सा जल डालें। (ध्यान रहे इन बीजों को पात्र में इस तरह से लगाएं की उगने पर यह ऊपर की तरफ उगें। यानी बीजों को खड़ी अवस्था में लगायें। और ऊपर वाली लेयर में बीज अवश्य डालें। अब कलश और उस पात्र की गर्दन पर मोली बांध दें साथ ही तिलक भी लगाएं। इसके बाद कलश में गंगा जल भर दें।

इस जल में सुपारी, इत्र, दूर्वा घास, अक्षत और सिक्का भी दाल दें। अब इस कलश के किनारों पर 5 अशोक के पत्ते रखें। और कलश को ढक्कन से ढक दें। अब एक नारियल लें और उसे लाल कपड़े या काली चुन्नी में लपेट लें। चुन्नी के साथ इसमें कुछ पैसे भी रखें। इसके बाद इस नारियल और चुन्नी को रक्षा सूत्र से बांध दें। तीनों चीजों को तैयार करने के बाद सबसे पहले जमीन को अच्छे से साफ़ करके उसपर मिट्टी का जौ वाला पात्र रखें। उसके ऊपर मिटटी का कलश रखें और फिर कलश के ढक्कन पर नारियल रख दें।

आपकी कलश स्थापना सम्पूर्ण हो चुकी है। इसके बाद सभी देवी देवताओं का आह्वान करके विधिवत नवरात्रि पूजन करें। इस कलश को आपको नौ दिनों तक मंदिर में ही रखे देने होगा। बस ध्यान रखें की खेतरी में सुबह शाम आवश्यकतानुसार पानी डालते रहें।

चैत्र नवरात्रि 2018 की महत्वपूर्ण तिथियाँ, नवरात्रि का दिन तारीख (वार) तिथि, देवी का पूजन

नवरात्रि दिन प्रथम 
18  मार्च 2018  (रविवार), प्रतिपदा शैलपुत्री पूजा, कलश स्थापना

नवरात्रि दिन द्वतीय
19 मार्च 2018 (सोमवार), द्वितीया, ब्रह्मचारिणी पूजा

नवरात्रि दिन तृतीय 
20  मार्च 2018 (मंगलवार), तृतीया, चंद्रघंटा पूजा

नवरात्रि दिन चतुर्थ 
21 मार्च 2018 (बुधवार), चतुर्थी, कुष्मांडा पूजा

नवरात्रि दिन पंचम 
22 मार्च 2018 (गुरुवार), पंचमी, स्कंदमाता पूजा

नवरात्रि दिन षष्ठम 
23  मार्च 2018 (शुक्रवार), षष्ठी, कात्यायनी पूजा

नवरात्रि दिन सप्तम 
24 मार्च 2018 (शनिवार), सप्तमी, अष्टमी, कालरात्रि पूजा, महागौरी पूजा

नवरात्रि दिन अस्टम  
25 मार्च 2018 (रविवार), अष्टमी, नवमी, राम नवमी

नवरात्रि दिन नवम 
26  मार्च 2018, (सोमवार), दशमी, नवरात्रि पारण

नवरात्री में नौ देवियों की पूजा होती है ये नौ देवियाँ है

1. शैलपुत्री


“शैल” का अर्थ है पहाड़। चूंकि माँ दुर्गा पर्वतों के राजा, हिमालय के यहाँ पैदा हुई थीं, इसी वजह से उन्हे पर्वत की पुत्री यानि “शैलपुत्री” कहा जाता है।

2. ब्रह्मचारिणी


इसका तात्पर्य है- तप का पालन करने वाली या फिर तप का आचरण करने वाली। इसका मतलब यह भी होता है कि एक में ही सबका समा जाना। इसका यह भी अर्थ निकलता है, कि यह सम्पूर्ण संसार माँ दुर्गा का एक छोटा सा अंश मात्र ही है।

3. चंद्रघंटा


माता के इस रूप में उनके मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्धचन्द्र अंकित है। इसी वजह से माँ दुर्गा का नाम चंद्रघण्टा भी है।

4. कूष्मांडा


इसका अर्थ समझने के लिए पहले इस शब्द को थोड़ा तोड़ा जाए। ‘कू’ का अर्थ होता है- छोटा। ‘इश’ का अर्थ-  ऊर्जा एवं ‘अंडा’ का अर्थ - गोलाकार। इन्हें अगर मिलाया जाए तो इनका यही अर्थ है, कि संसार की छोटी से छोटी चीज़ में विशाल रूप लेने की क्षमता होती है।

5. स्कंदमाता


दरअसल भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का एक अन्य नाम स्कन्द भी है। अतः भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस रूप को स्कन्दमाता के नाम से भी लोग जानते हैं।

6. कात्यायनी


एक कथा के अनुसार महर्षि कात्यायन की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर उनके वरदान स्वरूप माँ दुर्गा उनके यहाँ पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। चूंकि महर्षि कात्यायन ने ही सबसे पहले माँ दुर्गा के इस रूप की पूजा की थी, अतः महर्षि कात्यायन की पुत्री होने के कारण माँ दुर्गा कात्यायनी के नाम से भी जानी जाती हैं।

7. कालरात्रि


मां दुर्गा के इस रूप को अत्यंत भयानक माना जाता है, यह सर्वदा शुभ फल ही देता है, जिस वजह से इन्हें शुभकारी भी कहते हैं। माँ का यह रूप प्रकृति के प्रकोप के कारण ही उपजा है।

8. महागौरी


माँ दुर्गा का यह आठवां रूप उनके सभी नौ रूपों में सबसे सुंदर है। इनका यह रूप बहुत ही कोमल, करुणा से परिपूर्ण और आशीर्वाद देता हुआ रूप है, जो हर एक इच्छा पूरी करता है।

9. सिद्धिदात्री


माँ दुर्गा का यह नौंवा और आखिरी रूप मनुष्य को समस्त सिद्धियों से परिपूर्ण करता है। इनकी उपासना करने से उनके भक्तों की कोई भी इच्छा पूर्ण हो सकती है। माँ का यह रूप आपके जीवन में कोई भी विचार आने से पूर्व ही आपके सारे काम को पूरा कर सकता है।

पूजा का कृत्य प्रारम्भ
प्रातःकाल नित्य स्नानादि कृत्य से फुरसत होकर पूजा के लिए पवित्र वस्त्र पहन कर उपरोक्त पूजन सामग्री व श्रीदुर्गासप्तशती की पुस्तक ऊँचे आसन पर रखकर, पवित्र आसन में पूर्वाविमुख या उत्तराभिमुख होकर भक्तिपूर्वक बैठें और माथे पर चन्दन का लेप लगाएं, पवित्री मंत्र बोलते हुए पवित्री करण, आचमन, आदि को विधिवत करें। तत्पश्चात् दायें हाथ में कुश आदि द्वारा पूजा का संकल्प करें आज ही नवरात्री में नवदुर्गा पूजन हेतु अपना स्थान सुरक्षित करें।

सभी प्रकार की कामनाओ हेतु 
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्। 
रूपं देहि जयं देहि यषो देहि द्विषो जहि।।

अगर आप की पूजा में अनावश्यक विलम्ब हो रहा है तो इस मंत्र का प्रयोग करते हुए पाठ करे
पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्।।

रोग से छुटकारा पाने के लिए
रोगानषेषानपहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्। 
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।

पूजन करने की विधि:
मंत्रों से तीन बार आचमन करें।
ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः
हृषिकेषाय नमः बोलते हुए हाथ धो लें।

 आसन धारण के मंत्र:
ॐ पृथ्वि त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरू चासनम्।।

पवित्रीकरण हेतु मंत्र:
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षंतद्बाह्याभ्यन्तरं शुचि।।

चंदन लगाने का मंत्रः
ॐ आदित्या वसवो रूद्रा विष्वेदेवा मरूद्गणाः। तिलकं ते प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थसिद्धये।।

रक्षा सूत्र मंत्र (पुरूष को दाएं तथा स्त्री को बांए हाथ में बांधे)
मंत्रः ॐ येनबद्धोबली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।तेनत्वाम्अनुबध्नामि रक्षे माचल माचल ।।

दीप जलाने का मंत्रः
ॐ ज्योतिस्त्वं देवि लोकानां तमसो हारिणी त्वया। पन्थाः बुद्धिष्च द्योतेताम् ममैतौ तमसावृतौ।।

संकल्प की विधिः
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः, ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरूषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपराद्र्धे श्रीष्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे- ऽष्टाविंषतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुकषर्मा अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतोल। 

आदि मंत्रो को शुद्धता से बोलते हुए शास्त्री विधि से पूजा पाठ का संकल्प लें।

प्रथमतः श्री गणेश जी का ध्यान, आवाहन, पूजन करें।
श्री गणश मंत्र:
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटिसमप्रभ। 
निर्विध्नं कुरू मे देव सर्वकायेषु सर्वदा।।

कलश स्थापना के नियम :
पूजा हेतु कलश सोने, चाँदी, तांबे की धातु से निर्मित होते हैं, असमर्थ व्यक्ति मिट्टी के कलश का प्रयोग कर सकते हैं। ऐसे कलश जो अच्छी तरह पक चुके हों जिनका रंग लाल हो वह कहीं से टूटे-फूटे या टेढ़े न हों, दोष रहित कलश को पवित्र जल से धोकर उसे पवित्र जल गंगा जल आदि से पूरित करें। कलश के नीचे पूजागृह में रेत से वेदी बनाकर जौ या गेहूं को बौयें और उसी में कलश कुम्भ के स्थापना के मंत्र बोलते हुए उसे स्थापित करें। कलश कुम्भ को विभिन्न प्रकार के सुगंधित द्रव्य व वस्त्राभूषण अंकर सहित पंचपल्लव से आच्छादित करें और पुष्प, हल्दी, सर्वोषधी अक्षत कलश के जल में छोड़ दें। कुम्भ के मुख पर चावलों से भरा पूर्णपात्र तथा नारियल को स्थापित करें। सभी तीर्थों के जल का आवाहन कुम्भ कलश में करें।

कलश स्थापन मुहूर्त
सूर्योदय: 06  : 19 सूर्यास्त: 18 : 23 

चन्द्रोदय: 06 : 53 चन्द्रास्त: 19 : 14 

18 मार्च सन् 2018  विक्रमी संवत् 2075 दिन रविवार, प्रात: 06 : 23  से 07 : 45 समय 1  घण्टा 1 : 22  के बाद अभिजीत मुहूर्त मे लगभग दोपहर 11 : 57  से 12 : 47 तक रहेगा।

कलश में देवों का आवाहन करें 
ॐ कलषस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रूद्रः समाश्रितः। 
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।।

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति । 
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू।।

षोडषोपचार पूजन प्रयोग विधि
आसन (पुष्पासनादि)
ॐ अनेकरत्न-संयुक्तं नानामणिसमन्वितम्। कात्र्तस्वरमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।

पाद्य (पादप्रक्षालनार्थ जल)
ॐ तीर्थोदकं निर्मलऽचसर्वसौगन्ध्यसंयुतम्। पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं तेप्रतिगृह्यताम्।।

अघ्र्य (गंध पुष्प्युक्त जल)
ॐ गन्ध-पुष्पाक्षतैर्युक्तं अध्र्यंसम्मपादितं मया।गृह्णात्वेतत्प्रसादेन अनुगृह्णातुनिर्भरम्।।

आचमन (सुगन्धित पेय जल) 
ॐ कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु षीतलम्। तोयमाचमनायेदं पीयूषसदृषं पिब।।

स्नानं (चन्दनादि मिश्रित जल)
ॐ मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागरूवासितैः।पयोभिर्निर्मलैरेभिःदिव्यःकायो हि षोध्यताम्।।

वस्त्र (धोती-कुत्र्ता आदि)
ॐ सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे। मया सम्पादिते तुभ्यं गृह्येतां वाससी षुभे।।

आभूषण (अलंकरण)
ॐ अलंकारान् महादिव्यान् नानारत्नैर्विनिर्मितान्। धारयैतान् स्वकीयेऽस्मिन् षरीरे दिव्यतेजसि।।

गन्ध (चन्दनादि)
ॐ श्रीकरं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। वपुषे सुफलं ह्येतत् षीतलं प्रतिगृह्यताम्।।

पुष्प (फूल)
ॐ माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्त्तितः।
मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि पादयोरर्पितानि ते।।

धूप (धूप)
ॐ वनस्पतिरसोद्भूतः सुगन्धिः घ्राणतर्पणः।सर्वैर्देवैः ष्लाघितोऽयं सुधूपः प्रतिगृह्यताम्।।

दीप (गोघृत)
ॐ साज्यः सुवर्तिसंयुक्तो वह्निना द्योतितो मया।गृह्यतां दीपकोह्येष त्रैलोक्य-तिमिरापहः।।

नैवेद्य (भोज्य)
ॐ षर्कराखण्डखाद्यानि दधि-क्षीर घृतानि च। रसनाकर्षणान्येतत् नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।

आचमन (जल)
ॐ गंगाजलं समानीतं सुवर्णकलषस्थितम्। सुस्वादु पावनं ह्येतदाचम मुख-षुद्धये।।

दक्षिणायुक्तताम्बूल(द्रव्य पानपत्ता)
ॐ लवंगैलादि-संयुक्तं ताम्बूलं दक्षिणां तथा। पत्र-पुष्पस्वरूपां हि गृहाणानुगृहाण माम्।।

आरती (दीप से)
ॐ चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निस्तथैव च। त्वमेव सर्व-ज्योतींषि आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम्।।

परिक्रमा
ॐ यानि कानि च पापानि जन्मांतर-कृतानि च। प्रदक्षिणायाः नष्यन्तु सर्वाणीह पदे पदे।।

भागवती एवं उसकी प्रतिरूप देवियों की एक परिक्रमा करनी चाहिए। यदि चारों ओर परिक्रमा का स्थान न हो तो आसन पर खड़े होकर दाएं घूमना चाहिए।

क्षमा प्रार्थना
ॐ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि भक्त एष हि क्षम्यताम्।। अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम। तस्मात्कारूण्यभावेन भक्तोऽयमर्हति क्षमाम्।। मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं तथैव च। यत्पूजितं मया ह्यत्र परिपूर्ण तदस्तु मे।।

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पष्यन्तु मा कष्चिद् दुःख-भाग्भवेत् ।

No comments:

Post a Comment